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पन्द्रहवां बोल-२०६
एकान्त निश्चय नही हो सकता । अतएव यही कहा जाता है कि कालानुसार जितने मुहूर्त का दिन हो तदनुसार दिवस की मर्यादा मे ही साधु भोजन कर सकते है, क्योकि दिन छोटा भी होता है और वडा भी होता है। ऐसी दशा में यह निर्णय कैसे किया जा सकता है कि इस समय से इस समय तक या इतने काल को दिवस मानना चाहिए। मान लीजिए कि एक आदमी चौविहार का त्यागी है। वह रात्रि को खाता-पीता नहीं है । वह कार्यवश भारत से अमेरिका गया । भारत मे जिस समय दिन होता है, उस समय अमेरिका मे रात्रि होती है, ऐसा सुना जाता है और जब वहा रात्रि होती है तव' यहाँ दिन होता है। ऐसी स्थिति में वह चौविहार के प्रत्याख्यान का पालन किस जगह के दिवस के अनुसार करेगा ? ऐसे मनुष्य के विपय मे यही कहा जायेगा कि वह जब तक अमेरिका में रहे तब तक वहा के दिन के अनुसार ही चौविहार का प्रत्याख्यान करे। इस पर विचारणीय बात यह उपस्थित होती है कि जब यह वात व्यवहार के अनुसार ही मानी जाती है तो सवत्सरी या पक्खी वगैरह भी लौकिक और जित-व्यवहार के अनुसार न मान कर आगम के नाम पर झगडा करना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है?
साधु-सम्मेलन के समय सवत्सरी-पक्वी आदि का प्रश्न सामने आया था तब सबने मिलकर यह निर्णय किया था कि यह विषय कॉन्फ्रेस को सौप दिया जाये और कॉन्फ्रेंस जो निर्णय करे तदनुसार ही सवत्सरी-पक्खी आदि का आराधन किया जाये । इस प्रकार का प्रस्ताव करके साधुओ ने अपने हस्ताक्षर करके यह विषय कॉन्फ्रेंस को सौप दिया