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पन्द्रहवां बोल-२०५ दिन, पक्ष, मोस, ऋतु और सवत्सर आदि के व्यवहार का कारण भी काल ही है। यह एक मास का है, यह दो महीने का है, यह शरदऋतु का है, इत्यादि व्यवहार जिसके द्वारा किया जाता है, वह काल है । ज्ञानीजन जिसे समय कहते हैं वह भी काल ही है । समय, कला आदि जिसका काल से विभाग नहीं हो सकता-का समूह भी काल ही कहलाता है।
____ अन्य दर्शनकारो ने काल को बहुत अधिक महत्व दिया दिया है। यहाँ तक कि कोई-कोई दर्शनकार तो उसे ईश्वर के समान मानते है। उनका कथन है कि यह सारा संसार काल के गाल में समाया हुआ है। काल हो विश्व की सृष्टि करता है । किन्तु जैनदर्शन अनेकान्तवाद का समर्थक है। वह किसी अपेक्षा से ऐसा मानता है और दूसरी अपेक्षा से इस कथन का निपेध भी करता है । इस दूसरे दष्टिकोण के अनुसार गणना को या जिसके द्वारा गणना की जाये उसे अथवा जिसकी गणना की जाये उसे काल कहते हैं। काल द्रव्य रूप भी है और पर्याय रूप भी है । काल का पर्यायसमय आदि, जिनका दूसरा भाग नहीं हो सकता, वह भी काल ही कहलाता है । अथवा जिसके द्वारा वस्तु का ज्ञान हो वह भी काल है।
काल की सहायता के बिना वस्तु का ज्ञान नही हो सकता । वस्तु को ग्रहण करने में काल का विचार करना ही पड़ता है। इसी प्रकार विवाह सम्बन्ध आदि मे भी काल की सहायता ली जाती है । तात्पर्य यह है कि समस्त वस्तुओ का माप काल द्वारा ही किया जाता है।
काल तो प्रर्वत ही रहा है परन्तु भगवान् से जो प्रश्न पूछा गया है, वह यह है कि काल का प्रतिलेखन करने से