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पन्द्रहवां बोल
कालप्रतिलेखन
स्तव - स्तुतिमगल करने के बाद स्वाध्याय किया जाता है, मगर स्वाध्याय यथासमय होना चाहिए । अकाल में स्वाध्याय करने का निषेध है । इस कारण अब कालप्रति - लेखन के विषय में प्रश्न किया जाता है |
मूलपाठ
प्रश्न -- कालपडिले हणयाए णं भंते ! जीवे कि जणयई ? उत्तर - कालपडिलेहणयाए णं नाणावर णिज्जं कम्मं
खवेई |
शब्दार्थ
प्रश्न - हे भगवन् ! स्वाध्याय आदि कालप्रतिलेखन से जीव को क्या लाभ है ?
उत्तर-काल में स्वाध्याय आदि करने से ज्ञानावरणीय आदि कर्मो का क्षय करके जीव मोक्ष प्राप्त करता है ।
व्याख्यान
भगवान् के इस उत्तर पर विचार करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि काल का अर्थ क्या है ?