________________
चौदहवां बोल-२०१
सकते हैं और अशुद्ध विचार लाकर भी आत्मा को उसमें नहला सकते हैं । तो फिर अगर आप शुद्ध विचार लाकर उसमे आत्मा को स्नान कराएँ तो आपकी क्या हानि है ? क्या ऐसा करने के लिए कोई धर्मशास्त्र निषेध करता है? चित्तशुद्धि के लिए सभी कहते हैं. फिर चित्तं को शुद्ध करके उसमे आत्मा को क्यो स्नान नहीं कराते ? भगवान् ने कहा है-स्तव और स्तुतिरूप भावमगल करने से जीव आराधक होता है और मोक्ष प्राप्त करता है । भगवान् के इस कथन पर विश्वास रखकर स्तव और स्तुति रूप मगल का अभ्यास कर देखो तो पता चलेगा कि स्तव-स्तुतिमगल से कितना अधिक लाभ होता है !
मुझे बचपन से ही णमोकार मन्त्र पर विश्वास धा। जब मैं समझता कि मुझ पर किसी प्रकार का सकट आ पडा है, तब मैं इस महामन्त्र का स्मरण करके शरण लेता था । णमोकार मात्र का शरण लेने से मेरा सकट मिट भी जाता था । लोग कहते है बालक णमोकारमन्त्र मे क्या समझें? मगर शास्त्र का कथन है कि गर्भ का बालक भी श्रद्धावान् होता है । जब गर्भस्थ वालक भी श्रद्धावान होता है तो चलता-फिरता वालक श्रद्धावान क्यो नही हो सकता? गाधीजी ने अपनी आत्मकथा मे लिखा है कि मेरी रम्भा धाय ने परमात्मा के नाम के विश्वास का जैसा प्रभाव मेरे ऊपर बचपन मे डाला था, वैसा प्रभाव अनेक ग्रन्थ पढने पर भी नहीं पड़ सकता ।
इस प्रकार वालको पर भी परमात्मा के नाम का प्रभाव पड़ता है और वे भी परमात्मा के नाम पर विश्वास करते है । हा, उन्हे विश्वास कराने की आवश्यकता रहती