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१८८-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
मे कदाचित् तुम्हारे प्राण-पखेरू उड जाए तो तुम्हे न जाने क्या गति मिलेगी । इस कारण तुम मेरा उपदेश सुनकर ध्यान मे रखो तो तुम्हारा कल्याण होगा।
चोर ने सेठ की बात मानना स्वीकार किया । सेठ ने उसे णमोकारमन्त्र सुनाया और कहा मैं पानी लेकर आता है, तब तक इस मन्त्र का जाप करते रहना । चोर ने पहले कभी यह मन्त्र नहीं सुना था और इस समय वह घोर सकट में था । उसे णमोकारमन्त्र याद नहीं रहा । वह उसके स्थान पर इस प्रकार कहने लगा
प्रानू तानू कछू न जानूं, सेठ वचन परमानू ॥
उसने इस प्रकार णमोकारमन्त्र का जाप किया । यह स्तव नही तो स्तुति तो हुई 1 चोर मर कर न जाने किस गति मे जाता लेकिन स्तुति के प्रभाव से वह देव हुआ । यह स्तुति का ही प्रताप है।
कहने का आशय यह है कि नियमित गब्दो मे या पक्तिवद्ध जो हो वह स्तव है, और जिसके लिए कोई नियम विशेष नही है तथा जिसमे जिस किसी भी प्रकार से हृदय के भाव प्रकट किये जाए वह स्तुति है। अगर आप स्तव नही कर सकते तो स्तुति करो, मगर जो करो भावपूर्वक ही करो । भावपूर्वक की गई स्तुति भी आत्मा का कल्याण करती है।
'थवथुइमगल' अर्थात् स्तवन्तुतिमगल गट के विषय मे व्याकरण की दृष्टि से एक प्रश्न उपस्थित होता है कि थुइ (स्तुति) शब्द स्त-प्रत्ययान्त होने के कारण 'पहले आना चाहिए और थव (स्तव) शब्द बाद मे । लेकिन शास्त्र मे