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चौदहवां बोल-१६१
उदाहरणार्थ -रेलवे के प्रथमश्रेणी के यात्री को कही विश्राम लेना हो तो उसे धर्मशाला या साधारण मुसाफिरखाने में विश्राम लेने की आवश्यकता नही होती, क्योंकि उसे प्रथम श्रणी (First Class) का विश्रान्तिगृह ( Wating Room) मिलता है। इस व्यावहारिक उदाहरण के अनुसार ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप बोधि प्राप्त करने वाले मोक्ष के मुसाफिर को अगर विश्राम लेना पड़ता है तो वह कल्पविमान आदि मे जन्म लेकर ही विश्राम करता है और फिर मोक्ष जाता है। अन्तक्रिया करने वाला प्रथम तो उसी भव मे मोक्ष जाता है, अगर उसी भव मे मोक्ष न गया तो भी वह अच्छी ही स्थिति प्राप्त करता है- अर्थात् कल्पविमान, ग्रेवेयक या अनुत्तरविमान मे ही विश्रान्ति के लिए रुकता है । वहाँ से च्युत होकर वह मनुप्य ही होता है और ज्ञान, दर्शन एवं चारित्र की श्रेष्ठ आराधना करके मोक्ष जाता है ।
स्तव-स्तुति रूप भावमगल करने का ऐसा श्रेष्ठ फल मिलता है । अतएव प्रत्येक समय परमात्मा की प्रार्थना करते रहना चाहिए । भले ही मुख से परमात्मा का नाम लिया जाये या न लिया जाये, लेकिन हृदय मे तो ध्यान बना ही रहना चाहिए । कितनेक लोग 'मुख मे राम बगल मे छुरी' की कहावत चरितार्थ करते हैं और फिर कहते है कि हमे राम का नाम लेने का या प्रार्थना करने का कोई फल ही नही मिला । लेकिन इस प्रकार खोटी प्रार्थना करने वालो को समझना चाहिए कि तुच्छ भावना के साथ की हुई प्रार्थना या स्तुति से इष्टसिद्धि नही हो सकती । सच्चे अन्तःकरण से की गई प्रार्थना या स्तुति ही फलदायिनी सिद्ध होती है।