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१७०-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
प्रत्याख्यान करने से जीव को क्या फल मिलता है? भगवान से यह प्रश्न पूछा गया है । वास्तव में प्रत्येक कार्य का फल जानना आवश्यक है । फल देख-जाने बिना किसी भी कार्य में प्रवृत्ति नही हो सकती । इस कथन के अनुसार प्रत्याख्यान करने से क्या फल मिलता है, यह जानना भी आवश्यक है । प्रत्याख्यान के फल के सम्बन्ध में पूछे हुए प्रश्न के उत्तर में भगवान ने फरमाया है कि-प्रत्याख्यान करने से मानव-द्वारी का निरोध होता है।
हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह, यह पाच आस्रव है। प्रत्याख्यान इन पाच मानवों को रोकता है। जो हिंसा का त्याग करेगा वह किसी जीव को मारेगा नही और न दुख ही देगा। वह स्वय कष्ट सहन कर लेगा पर दूसरों को कण्ट नहीं पहुंचाएगा । जो असत्य का त्याग करेगा वह किसी के सामने झूठ नही बलिगा । चोरी का त्याग करने वाला किमी की चोज नही चुराएगा । मेथुन का अथवा पररत्री का त्याग करने वाला इस पाप मे कदापि नही पड़ेगा।
अभया रानी ने सुदर्शन सेठ को कितना भय और प्रलोभन दिया, फिर भी मुदर्गन ने व्यभिचार का सेवन नही किया। इसका कारण यही था कि सुदर्शन परस्त्री का त्यागी था । इसी प्रकार परिग्रह का परिमाण करने वाला दसरे के द्रव्यो पर मन नहीं करेगा और धन आने पर प्रसनता का तथा धन जाने पर दु:ग्व का अनुभव नही करेगा। परन्तु परिग्रह का सर्वथा त्यागी तो किसी भी प्रकार का परिग्रह नही रखेगा। इस प्रकार प्रत्याख्यान करने से इच्छा