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१७६-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
कि प्रत्याख्यान से आस्रव का निरोध होता है । भगवान् के इस उत्तर से स्पष्ट विदित होता है कि भगवान् ने भी मूलगुणो पर अधिक जोर दिया है क्योकि मूलगुणो मे ही आस्रव का निरोध होता है । हिंसा का निरोध अहिंसा से होता है और असत्य का निरोध सत्य से ही होता है । इसी प्रकार अन्य आस्रवो का निरोध भी मूलगुणो से ही होता है इससे स्पष्ट हो जाता है कि भगवान् ने मूलगुणम्प प्रत्याख्यान पर अधिक बल दिया है । भगवान् ने कहा है कि प्रत्याख्यान करने से आस्रवद्वारों का निरोध होता है और उससे जीव मुक्ति के सन्निकट पहुचता है । भगवान् के इस कथन से यह भी स्पष्ट होजाता है कि प्रत्याख्यान आस्रवनिरोध के साथ ही पूर्व-कर्मो को भी नष्ट करता है। इस कथन के लिए प्रमाण यह है कि प्रत्याख्यान को मोक्ष का अग माना है । इस विषय मे टीकाकार कहते हैं
पच्चक्खाणे वि णं सेविऊणं भावेण जिणवरहिट। पत्ताणता जीवा सासयसोक्खं लहु मोक्ख ॥
अर्थात- मूलगुण और उत्तरगुणरूप प्रत्याख्यान का भावपर्वक सेवन करना चाहिए । ऐसा न हो कि हस का भाग कौवा खा जाये । अर्थात् प्रत्याख्यान भी दूसरे प्रयोजनो से किया जाये ! मोक्ष के लिए प्रत्याख्यान करना हो तो भावपूर्वक ही करना चाहिए और मोक्ष के उद्देश्य से किया जाने वाला प्रत्याख्यान ही आत्मा के लिए लाभदायक मिट होता है और उसी से आस्रवो का निरोध हो सकता है। बहतसे लोग प्रत्याख्यान करके लौकिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहते है । इस प्रकार का प्रत्याख्यान मोक्ष का