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चौदहवां बोल-१८३
यह शक्रस्तव है । शकेन्द्र इसी स्तव द्वारा भगवान् की प्रार्थना करता है, अतः इसे शक्रस्तव या शक्रेन्द्रस्तव भी कहते हैं। आज हम लोगो मे पामर दशा व्याप गई है, इसीलिए हमारे सामने उनम वस्तु का भी आदर नहीं होता। गकेन्द्र जो प्रार्थना करता था वही प्रार्थना हमे प्राप्त हुई है, अत यह प्रार्थना बोलते समय हमे कितनी प्रसन्नता होनी चाहिए ? जो शब्द इन्द्र के मुख में से निकले थे, वही शब्द मेरे मुख से निकल रहे हैं. इस विचार से प्रार्थना करते समय हमारे अन्दर कितना उत्साह और कितना आलाद होना चाहिए ? लेकिन आज तो स्थिति ऐसी है कि मानो महाराणा प्रताप का भाला तो पडा है मगर उसे उठाने वाला कोई नही है ! इसी प्रकार गकेन्द्र द्वारा की गई प्रार्थना तो है, लेकिन उसे बोलने वालो मे जो उत्साह चाहिए, वह बहुत थोडे लोगो मे ही पाया जाता है ।
___ कहा जा सकता है कि शक्रेन्द्र द्वारा किया हुआ स्तव हमे किसलिए दिया गया है ? इस प्रश्न के उत्तर मे शास्त्र का कथन है कि आध्यात्मिक दृष्टि से शकेन्द्र की अपेक्षा भी श्रावक का पद ऊँचा है और शकेन्द्र साधु-साध्वियो को नमस्कार करता है। ऐसी स्थिति मे शकेन्द्र का स्तव उन्हे न दिया जाये तो किसे दिया जाये ? इस उत्तर के आधार पर आशका हो सकती है कि यदि शकेन्द्र की अपेक्षा साधश्रावक का पद ऊँचा है तो फिर साधु-श्रावक का स्तवन शकेन्द्र को दिया जाना चाहिए था । जव गकेन्द्र हम से नीची श्रेणी का है तो उसके द्वारा किया हुआ स्तवन हमे किस उद्देश्य से दिया गया है ? बडो की चीज छोटो को दी जाती है ?