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तेरहवां बोल-१७१
का निरोध हो जाएगा। प्रत्याख्यान का महत्व ही यह है कि प्रत्याख्यान करने वाले को अपने त्यग से बाहर की मूल्यवान वस्तु मिलेगी तो भी वह लेने के लिए तैयार नही होगा और न उमे स्वीकार करेगा । उदाहरणार्थ अरणक श्रावक को किसी देव ने कुण्डलो की जोडिया दी थी। वे कुण्डल कितने कीमती होगे ? फिर भी उसने कुण्डल अपने पास नही रखे । उमने राजाओ को भेट कर दिये । इसका कारण यही था कि कुण्डल को जोडी उसके त्याग की मर्यादा के बाहर की वस्तु थी । उसने परिग्रह को मर्यादा कर ली थी । जो परिग्रह का परिमाण कर चुका होगा वह चिन्तामणि या कल्पवृक्ष मिलने पर भी उसे ठुकरा देगा, क्योकि यह अमूल्य वस्तुएँ उसका त्याग भग करने वाली है। इस प्रकार की अमूल्य वस्तुए भी स्वीकार न करना प्रत्याख्यान का ही प्रताप है।
सभी लोग अगर इच्छा का परिमाण कर ले तो ससार में किसी प्रकार की अशान्ति हो न रहे । आज ससार मे जो अशान्ति फैल रही है, वह इस व्रत के अभाव के कारण ही . फैल रही है । इस व्रत के पालन न करने के कारण ही बोल्गेविज्म-साम्यवाद उत्पन्न हुआ है। भारतवर्ष मे भी साम्यवाद का प्रचार बढ़ रहा है । धनवान् लोग पूंजी दवाकर बैठे रहे और गरीब दुख पाये, तव गरीवो को धनिको के प्रति द्वेष उत्पन्न हो, यह स्वाभाविक है । गरीबो के हृदय में इस प्रकार की भावना उत्पन्न हो सकती है कि हम तो मुसीबतें उठा रहे है और यह लोग अनावश्यक धन दवाकर बैठे है । तुम ठांस-ठाँस कर पेट भरो और बचे तो फैक दो, मगर तुम्हारे सामने दूसरा मनुष्य