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१६० सम्यक्त्वपराक्रम (२) सथारा करने का कोई कारण नही है, तब तक इस प्रकार के कायोत्सर्ग करने का विधान नही है । अतएव योग्य समय " प्राप्त होने पर सथारा करना ही उचित है ।
सिंह वगैरह की कोई प्राणघातके उपसर्ग उपस्थित होने पर भी संथारा किया जाता है, किन्तु वह सथारां इस रूप में किया जाता है कि अगर इस उपसर्ग से मेरे प्राण
चले जाएँ तो यावज्जीवन के लिए मेरा कायोत्सर्ग है और 'यदि इस उपसर्ग से बच जाऊँ तो मेरा यह कायोत्सर्ग __ जीवन भर के लिए नही है। र - कहा जा सकता है कि यह कायोत्सर्ग तो 'वृद्धा नारी
प्रतिव्रता' की उक्ति चरितार्थ करता है । अर्थात उपसर्ग से ।' न बचे तो त्याग है, बच गये तो त्याग नही है, भला यह __भी कोई त्याग है ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि
उपसर्ग के समय इस प्रकार का त्याग करने से उपसर्ग के कारण पर क्रोध नही भडकता । कायोत्सर्ग करने के बाद, उपसर्ग के प्रति इस प्रकार का क्रोध नही होता कि ' मैने इसका क्या विगाडा था कि यह मुझे कष्ट पहुंचा रहा है। जव उपसर्ग के कारण पर क्रोध नही आता और उपसर्गदाता पर भी शान्तभाव बना रहता है, तभी कायोत्सर्ग ठीक रह सकता है। कायोत्सर्ग करने पर भी यदि उपसर्ग करने वाले के प्रति क्रोध उत्पन्न हुसा तो वह कायोत्सर्ग ही नही है ।
अर्जुन माली सुदर्शन श्रावक को जब मारने पाया था तव सुदर्शन को उस पर क्रोध आना सभवित था। लेकिन सुदर्शन ने अर्जुन पर क्रोध नही किया, बल्कि अपना मित्र समझा । उसने विचार किया कि अर्जुन परीक्षा ले रहा है कि मुझ मे क्रोध है या नही ? मैं भगवान् का सच्चा भक्त