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१६६-सम्यक्त्वपराक्रम (२) के वीच भेद डालने वाला वह गरीर ही है। उदाहरणार्थआग पर पानी रखने से पानी उबलता है और उवलने पर सन्-सन् की आवाज करता है। यह आवाज करता हुआ पानी मानो यह कह रहा है कि मुझ मे आग बुझा देने की शक्ति है, लेकिन मेरे और आग के बीच मे यह पात्र आ गया है। मैं इस पात्र मे बन्द हूं और इसी कारण आग मुझे उबाल रही है और मुझे उवलना पड़ रहा है। इसी प्रकार आत्मा तो सुखस्वरूप ही है, परन्तु इस शरीर के साथ वद्ध होने के कारण वह दुख पा रहा है। कायोत्सर्ग द्वारा जब गरीर सम्बन्धी ममत्वभाव त्याग दिया जाता है तब आत्मा में किसी प्रकार का दुख नही रह पाता ।