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कायोत्सर्ग
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आत्मशुद्धि के लिए प्रतिक्रमण के विषय मे कहा जा चुका है । प्रतिक्रमण के पश्चात् कायोत्सर्ग किया जाता है । तात्पर्य यह हैं कि प्रतिक्रमण करते समय व्रतो के अतिचार रूपी घाव देखकर, उन्हे बन्द करने के लिए कायोत्सर्ग रूपी औषध लगाई जाती है। जिस प्रकार मैले कपडे घोये जाते हैं और उनका मैल दूर किया जाता है, उसी प्रकार आत्मा के व्रतरूपी वस्त्र पर अतिचार रूपी जो मैल चढ गया है, उसे साफ करने के लिए कायोत्सर्ग "रूपी जल से धोना पडता है । यही कायोत्सर्ग है । जिस किसी उपाय से शरीर को ही नष्ट कर डालना कायोत्सर्ग नही है, वरन् शरीर सबधी ममता को ' त्याग देना ही सच्चा कायोत्सर्ग है ।
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कायोत्सर्ग के विषय में भगवान् से प्रश्न किया गया है
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मूलपाठ
प्रश्न - काउसग्गेण भते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर - काउसग्गेण तीयपड़प्पन्न' पायच्छित्तं विसोहेइ, विसुद्धपायच्छित्ते य जीवे निव्वुयहियए श्रीहरियभरुत्व भारवहे पसत्यधम्मभाणोवगए सुहं सुहेथं विहरइ ॥ १२ ॥
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