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१४२-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
स्थिति में यह विचारणीय है कि पहले किस पाप का त्याग करना चाहिए ? कल्पना करो कि एक मनुष्य वीडी पीता है और दूसरा आदमी कदमूल का शाक खाता है । यद्यपि दोनो वस्तुएँ त्याज्य हैं और दोनो का ही त्याग कराना उचित है किन्तु पहले किस वस्तु का त्याग कराना उचित कहा जा सकता है ? मेरे विचार से बोडी पीना अनर्थदण्ड का पाप है । इस प्रकार क्षायोपगमिकभाव से मिली हुई रसनेन्द्रिय को धूम्रपान द्वारा औदयिक भाव में लाया जाता है। ऐसे करने वाले लाग स्वय पापात्मा वनते है और दूसरो को भी पापात्मा बनाते है ।
स्पर्शेन्द्रिय का भी इसी प्रकार दुरुपयोग किया जा रहा है । क्षायोपगमिकभाव से प्राप्त स्पर्गेन्द्रिय को किस प्रकार उदयभाव मे लाया जाता है, इस पर विचार किया जाय तो पता चले । जव कोई वस्तु पहले-पहल सामने आतो है तो वह खराब लगती है, लेकिन बार-बार के उपयोग से वह अच्छी लगने लगती है । अगर किसी वस्तु को देखकर पहले ही उसका उपयोग न किया जाये तो उससे बचाव हो सकता है, मगर उपयोग करने के बाद फिर उससे छुटकारा पाना कठिन हो जाता है । उदाहरणार्थ- चर्बी के वस्त्र यदि पहले से ही न पहने जाए तो उनसे बचना कठिन नही है, मगर वस्त्रो का उपयोग करने के पश्चात्, आदत हो जाने पर, त्याग करने में कठिनाई मालम पडती है । चर्वी के इन वस्त्रो के पहनने से कंसां और कितना पाप हो रहा है, इस बात का विचार अगर प्रतिक्रमण करते समय किया जाये तो इन वस्त्रो को त्याग करने की इच्छा हुए विना नही रह सकता ।