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रथारहवां बोल-१५१
(जामनगर-काठियावाड ) देखा जाता है कि वर्षा का जो पानी गड्डो मे भर जाता है और उसमे कीडे पड जाते हैं, उन कीडो को स्त्रियाँ एकत्र करके सुरक्षित जगह मे रख देती है । स्त्रियो की यह दया प्रशस्त है। किन्तु जो स्त्रिया ऐसे जीवो पर भी इतनी दया रखती हैं उन्हे अपने घर में किस प्रकार वतना चाहिए और कितनी अधिक स्वच्छता रखनी चाहिए? अगर वे अपने घर मे गन्दगी रखती हैं तो दया का उपहास कराती है । उनका व्यवहार देखकर लोग यही कहेगे कि जैनो की यह कैसी दया है जो घर मे तो गन्दगी रखते हैं और बाहर इस प्रकार जीव वचाते हैं ! यहाँ लोगों के घरो मे इतनी गन्दगी रहती है कि न पूछो बात ! शास्त्र मे गन्दगी रखने का विधान कही नही है, प्रत्युत शास्त्र तो शौच-स्वच्छता-पवित्रता को ही प्रधानता देता है । केवल नहाना-धोना या पानी बहाना ही शौच नहीं है, किन्तु 'शौचात् स्वाङ्गजुगुप्सा परैरससर्ग ' अर्थात् शरीर की अशुचि का विचार करने से अपने अग पर जुगुप्सा और दूसरे के अग पर असगभाव उत्पन्न होगा । तात्पर्य यह है कि आत्मा की शुद्धि ही सच्ची शुचि है।
कहने का सारांश यह है कि शौच का सदैव ध्यान रखना चाहिए । शौच का ध्यान रखने से पाचवी समिति का बराबर पालन हो सकता है । इसी प्रकार तीन गुप्तियो का भी भली-भाति पालन करना चाहिए। । असबल चारित्रवान् पुरुष भगवान द्वारा प्ररूपित आठ प्रवचनो का पालन करके मोक्ष प्राप्त कर सकता है ।
पहले कहा जा चुका है कि प्रतिक्रमण करने से व्रतो के छिद्र वन्द हो जाते हैं और छिद्र बन्द होने से कर्मों का