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१०८-सम्यक्त्वपराक्रम (२) था। मेरे उत्तर को आप अपने ज्ञान से जानते ही है ।
भगवान् ने कहा हे मक । तूने कालोदधि को समोचीन उनर दिया था । यदि तुम कहते कि मै धर्मास्तिकाय देखता ह, तो तुम अनन्त अरिहन्तो की अवलेहना करते। मगर तुमने जो उत्तर दिया, वह समीचीन है।
लोक-व्यवहार मे भी अनुमान को प्रमाण मानना पडता है । अनुमान को प्रमाण माने बिना व्यवहार में भी काम नही चल सकता । ऐसी स्थिति में धर्म के विपय में अनुमान प्रमाण क्यो न माना जाये ? नदी को देखकर प्रत्येक मनुष्य उसके उद्गमस्थान का अन्दाज लगाता है । आप सिर्फ नदी देख रहे हैं, उसका उद्गमस्थान आपको दिखाई नहीं देता, फिर भी नदी देखने से उसका उद्गमस्थान मानना ही पड़ता है । इसी प्रकार एक भाग को देखने से दूसरा भाग भी मानना पड़ता है। इसी न्याय से सर्वज्ञ और वीतराग भगवान् ने जो कुछ कहा है उसे भी सत्य मानना चाहिए । तीर्थङ्कर भगवान् ने अपने ज्ञान-प्रकाश द्वारा देखकर ही प्रत्येक बात का प्ररूपण किया हैं, इसी कारण कहा गया है कि जो भगवान् तीन लोक मे उद्योत करने वाले हैं, उन्हे नमस्कार करता है । इसी तरह जो अरिहन्त भगवान् धर्म की स्थापना करते है, उन्हे भी मैं नमस्कार करता हू । ऐसे अरिहन्त भगवान् चौवीस है और वे सम्पूर्ण ज्ञान के स्वामी है। . चोवीस तीर्थकरो का स्तवन तो बहतसे लोग करते है, किन्तु स्तवन के गुण भलीभाति समझकर स्तवन किया जाये तो सब प्रकार की गकाए निर्मूल हो जाती है। चौवीस तीर्थंकरो की स्तुति करने का फल बतलाते हुए भगवान् ने