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दसवां बोल-११७
इन पच्चीस आवश्यको के होने पर ही वदना पूर्ण होती है।
यहा यह देखना है कि इन पच्चीस आवश्यको का अर्थ क्या है ? साध्वी या अन्य स्त्री गुरु से सत्ताईस हाथ दूर रहे और शिष्य या अन्य पुरुष साढे तीन हाथ दूर रहें। यह गुरु का अभिग्रह-क्षेत्र है अगर स्थान का सकोच न हो तो गुरु से पुरुष या शिष्य साढे तीन हाथ की और साध्वी या स्त्री सत्ताईस हाथ की दूरी पर रहकर, विनीत भाव से, नीची दृष्टि करके, हाय मे ओघा और मुख पर मुखवस्त्रिका सहित गुरु को नमस्कार करते हुए "खमासणा" का यह पाठ बोलते है
इच्छामि खमासमणो वंदिउं ।
अर्थात् ~ हे क्षमाश्रमण ! मैं आपको वन्दन करने की इच्छा करता है।
कहा जा सकता है कि जब वन्दन करने की इच्छा है ही तो इस प्रकार कहने की क्या आवश्यकता है ? इस का उत्तर यह है कि इस प्रकार कहने वाले व्यक्ति को गुरु के अभिग्रह मे प्रवेश करना है, अतएव वह गुरु की स्वीकृति चाहता है । अभिग्रह के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा चार भेद हैं । इन सव का यहाँ वर्णन न करते हुए सिर्फ इतना कह देना आवश्यक है कि गुरु के क्षेत्र-अभिग्रह मे प्रवेश करना है, इसी हेतु गुरु की स्वीकृति ली जाती है। गुरु को इच्छापूर्वक नमस्कार करना चाहिए । नमस्कार करने मे उद्दडता होना उचित नहीं है और इसी कारण आचार्य के क्षेत्र-अभिग्रह में प्रवेश करने की स्वीकृति ली जाती है। अगर आचार्य अभिग्रह मे प्रवेश करने की स्वीकृत देना