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११८-सम्यक्त्वपखक्रम (२) चाहते होंगे तो वे. 'छदेण.'. अर्थात् ' जैसी तुम्हारी-इच्छा, कहेगे । अगर वे अभिग्रह मे प्रवेश करने की स्वीकृति नही देना चाहते होगे तो 'तिविहेणे' कहने का तात्पर्य यह है कि वहीं से मन, वचन और काय से नमस्कार कर लो - अगर आचार्य 'छदेण' कह कर अभिग्रह मे प्रवेश करने की स्वीकृत दे तो उस समय वालक के समान अथवा
दीक्षा धारण के समय के समान नम्रता धारण करके, हाथ __ मे ओघा रखकर और मुख पर मुखवस्त्रिका सहित अभिग्रह ___ मे 'निस्सही निस्सही' (अर्थात् मैं मन, वचन, काय से सावध __ योग का त्याग करता हू) कहते हुए गुरु के अभिग्रह मे प्रवेश
करना चाहिए और फिर गुरु के चरणो मे निकट पहुंच कर बारह प्रकार का आवर्तन करना चाहिए । आवर्तन करते समय, 'अहोकाय कायस फासिय' ऐसा वोलते जाना चाहिए। 'अहोकाय काय' इसमे छह अक्षर हैं । इन छह अक्षरो मे से दो-दो अक्षरो का एक-एक आवर्तन होता है । इस प्रकार 'अहोकाय काय' इन छह अक्षरों के तीन आवर्तन हुए । 'अहोकाय काय' ऐसा बोलते हुए आवर्तन करना चाहिए और सफ़ासिय' शब्द का उच्चारण करते समय अपने हाथ और मस्तक द्वारा गुरु के चूर्ण स्पर्ग करना चाहिए ।
'अहोकाय कायसफासिय' का अर्थ है- 'हे गुरु महाराज! आपकी नीची काया अर्थात् चरण को मैं अपनी ऊँची काया अर्थात् मस्तक से स्पर्श करता हू ।'. 11 :।
आवर्तन और चरणस्पर्श करने के पश्चात इस प्रकार कहना चाहिए
'खमणिज्जो में !, "किलामो अप्पकिलंताण बहु सुभेणं मे दिवसो वइक्कतो।'
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