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दसवाँ बोल-१२३
विजयी होते हैं और अशिक्षित योद्धा बहुसख्यक होने पर भी हार जाते हैं । इसी प्रकार विधिरहित बहुत वदना की अपेक्षा विधियुक्त अल्प वदना अधिक फलदायक होती है। इसलिए वदना की विधि सीखने की आवश्यकता है। प्राचीनकाल के लोग विधिपूर्वक ही वन्दना करते थे । आप लोग वदना को विधि सीखकर, विधिपूर्वक वन्दना करगे तो आपका कल्याण होगा।
विधिपूर्वक वन्दना करने से क्या फल मिलता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने फरमाया है कि विधिपूर्वक वन्दना करने से जीव नीच गोत्र कम का क्षय करके उच्चगोत्र का बन्ध करता है ।
भगवान् ने जो उत्तर दिया है, उसके विषय मे यह समझ लेना आवश्यक है कि उच्चगोत्र किसे कहते हैं और नीचगोत्र कर्म क्या है ? आजकल नीचगोत्र और उच्चगोत्र कर्म का अर्थ समझने मे भूल होती है और इससे अनेक लोग भ्रम मे पड गये हैं । वीरमगाव मे मुझ से प्रश्न किया गया था कि शास्त्र में उच्च और नीच गोत्र का नाम आता है ? मैंने कहा- हाँ, शास्त्र मे दोनो का नाम आता है । तो उच्च गोत्र उच्च होगा और नीच गोत्र नीच होगा? उत्तर मे मैंने कहा - तुम इस प्रकार तो कहते हो पर शास्त्र में कही ऐसा आया हो तो बताओ कि किसी मनुष्य को छूना नही चाहिए । इसके अतिरिक्त नीचगोत्र क्षय किया जाता है या उसको रक्षा की जाती है ? जब नीचगोत्र क्षय किया जाता है या उसकी रक्षा की जाती है ? जब नीचगोत्र क्षय किया जाता है, तो वह नीचगोत्र ही बना रहता है, यह कसे कहा जा सकता है ? नीचगोत्र वाला उच्चगोत्र भी