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दसवां बोल-१२६ पड गई है। यद्यपि चम्पा के फूलो की माला आपकी दृष्टि में अच्छी वस्तु है, फिर भी अशुचि मे पडी हुई वह माला पहनने योग्य नही है। इसी प्रकार जो लोग पासत्थापन की अशुचि मे पड गये हैं, उनके प्रति बुद्धिमान् पुरुष किसी प्रकार का द्वेष धारण नहीं करते किन्तु साथ ही गुणीजनों के प्रति की जाने योग्य वदना भी नहीं करते । निशीथसूत्र मे भी कहा है
ने भिक्खू पासत्थ वदइ, वंदतं वा साइज्जइ, एवं कुसीलं उसन, प्रहाछंद संसत्तं ।
इस प्रकार पार्श्वस्थ आदि को वदना करने का बहुत कुछ निषेध किया गया है । यह ठीक है कि वदना करने से बहुत लाभ होते है, मगर गुणरहित को वदना करने से लाभ के बदले उलटी हानि ही होती है । वदना के जो बत्तीस दोष बतलाये गये है, उनके वर्णन करने का अभी समय नही है। अतएव सक्षेप में मैं इतना ही कहता हूँ कि पच्चीस आवश्यक सहित और बत्तीस दोषरहित वदना करने का फल नीचगोत्र का क्षय करना और उच्चगोत्र बाधना है।।
गोत्र की व्याख्या पहले की जा चुकी है। श्रेष्ठ पुरुषो की वाणी का पालन करने वाला उच्चगोत्री है और नीच पुरुष की वाणी का अनुसरण करने वाला नीचगोत्री है। किसी-किसी कुल मे अमुक प्रसगो पर मदिरापान करने की परम्परा होती है । ऐसे नीच सस्कार का आचरण करना नीचगोत्र होने का कारण है। इसी प्रकार किसी के कुल मे ऐसी पद्धति होती है कि अमुक प्रसग पर कोई शुभ कृत्य करना ही चाहिए। यह उच्च या श्रेष्ठ की वाणी का आचरण है। इस प्रकार जो जैसो की वाणी का पालन करता