________________
१२४-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
, बन सकता है।
गोत्र का अर्थ कहते हुए कहा गया है -
गां वाणी त्रायते रक्षते इति गोत्रः। ___ 'गो' शब्द के अनेक अर्थ होते हैं । यहाँ 'गो' शब्द का अर्थ वाणी है और 'त्र' का अर्थ पालन करता है। इस प्रकार गोत्र का अर्थ 'वाणी का पालन करना होता है। इस अर्थ के अनुसार श्रेष्ठ पुरुपो की वाणी का पालन करने वाला उच्चगोत्री है और नोच पुरुपो की वाणी का प लन करने वाला नीचगोत्री कहलाता है।
कहा जाता है कि नीचगोत्र वाले को मुक्ति नही :मिल सकती, लेकिन यह ध्यान में रखना चाहिए कि नीचगोत्र कर्म का क्षय भी हो जाता है और तब वह मुक्ति का अधिकारी क्यो न होगा? नीचगोत्र में उत्पन्न होकर के भी उच्च पुरुषो की वाणी का पालन करने वाला मुक्ति प्राप्त कर सकता है। गोत्र दो प्रकार का है - एक जन्मजात गात्र और दूसरा कर्मजात गोत्र । जन्मजात गोत्र कम द्वारा वदला जा सकता है । श्री उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है
लोवागकुलसभूत्रो, गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएस बलो नाम, प्रासी भिक्खू जिइंदियो ।
- उत्तराध्ययन, १२-१ । इस कधन से यह स्पष्ट हो जाता है कि चाण्डाल कुल मे उत्पन्न हो जाने पर भी महापुरुपो की वाणी का पालन करने वाला उच्चगोत्री है और ब्राह्मणकुल मे उत्पन्न हो करके भी नीच-वाणी को पालने वाला नीचगोत्रवान् है। महाभारत मे भी कहा है कि ब्राह्मण कुल मे उत्पन्न होने