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*११०-सम्यक्त्वपराक्रम (२) करों की स्तुति करने में बीरता और वीरता रखो। उदा। सीनता का त्याग करो । .. आपने युधिष्ठिर की कथा सुनी होगी। युधिष्ठिर में
उदासीनता आ गई थी। अगर उनमे उदासीनता रह गई होती तो अर्थक्रिया की सिद्धि न हो सकती । भीष्म ने उस समय युधिष्ठिर से कहा-यह अवसर उदासीनता दूर करके अर्थक्रिया मिद्ध करने का है, अतः घबराओ मत । तुमने अनेक लोगो को मारा है फिर भी घबराने की जरूरत नही है. क्योकि इस समय तुम्हारे ऊपर कार्यसिद्धि करने का उत्तरदायित्व आ पडा है । जो हार गया या मारा गया वह तो गया ही, परन्तु जो जीता है या जो जीवित है उसके सिर गम्भीर, उत्तरदायित्व आ पडा है । जो मर गये वे तो गये ही, किन्तु उनके पीछे जो लोग बचे है उनकी रक्षा का भार विजेता के कन्धो पर आ पड़ता है। जो विजेता व्यक्ति मृत पुरुषो के पीछे रहे हुए लोगो की सार-सभाल नही रखता, वह पतित हो जाता है । तुम विजयी हुए हो अतः बचे हुए लोगो की सार-सभाल का भार तुम्हारे जिम्मे है। तुम्हारे ऊपर सम्पूर्ण भारतवर्ष का भार है । अतः तुम्हारे
जो शत्रु मारे गये हैं उनके पत्नी-पुत्र आदि के प्रति वैरभाव । न रखते हुए उन्हे सान्त्वना दो - शान्ति पहुचाओ, जिससे १ वह लोग, दुर्योधन को भूल जाए ! ', हे युधिष्ठिर | राजा चाहे तो अपना भी कल्याण कर
सकता है और दूसरो का भी कल्याण कर सकता है। इसी , प्रकार वह दोनो का अकल्याण भी कर सकता है । मगर • अपना और दूसरो का कल्याण करने वाले राजा उगलियो पर गिनने योग्य ही होते हैं । अधिकाश राजा तो प्रजा को