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४४०२--सम्यक्त्वपसाक्रम (२) दुनिया का. कामाकैसे चल सकता है? क्या उस स्थिति में ससार 'दु खो से व्याप्त नही हो जायेगा? इसी कारण ऐसे कृत्य निन्दित माने गये है। इसी तरह के और-और कार्य भी सावर्ण्य कार्य है । निंद्य कार्य त्याज्य ही है । अतएव निन्दित कार्यो का त्याग । करके अनिन्दित कार्य करोगे तो समभाव' की रक्षा होगी और आत्मकल्याण भी हो सकेगा। समभाव की रक्षा करने से सावद्य- योग की निवृत्ति अवश्य होती है। अतएव सावध योग से निवृत्त होओ ओर सम भाव की रक्षा करो। इसी मे कल्याण है। '' 'सावा योग में 'निवृत्त होने के लिए औत्मा को किसी 'आलम्बन की आवश्यकता रहती है ) एक वस्तु से निवृत्त 'होने के लिए दूसरी वस्तु का''अवलम्बन लेना जरूरी है। दूसरी का अवलम्बन लिए बिना एक से निवृत्त होना कठिन -है । उदाहरणाथ - आप लोग शाकाहारी है इसलिए मासा
हार से बचे हुए है । अगर आपको शाकाहार प्राप्त न होता । तो मासाहार से बचना क्या सभव था ? इस प्रकार दूसरी वस्तु सामने उपस्थित हुए विना किसी का त्याग ,नही किया जा सकता । यद्यपि उपदेश,तो, निराहारी बनने का दिया जाता है परन्तु वह अवस्था' सहसा प्राप्त नही हो सकती । अतएव सर्वप्रथम मासाहार से बचना आवश्यक है,। मासाहार से बचने का.उपाय यही है कि भाकाहार प्रस्तुत हो । • शाकाहार का अवलम्बन लेना भी मासाहार. छोडने और धीरे-धीरे निराहार बनने का एक मार्ग है । महार भी वस्त्र का त्याग करने के लिए अल्पारभी वस्त्र का आलम्बन लिया ही जाता है। इसी प्रकार जव सावध योग, से निवृत्त होना . हो तो निवद्ययोग का अवलम्बन लेना आवश्यक हो जाता