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नवा बोल चतुर्विंशतिस्तव
प्रश्न-चउव्वीसत्थएणं भते ! जीवै कि जणयइ ? उत्तर-चउन्नीसत्थएणं दंसणविसोहिं जणयइ ॥६॥
शब्दार्थ
है
प्रश्न- चौबीस जिनो की स्तुति करने से जीव को क्या लाभ होता है ? उत्तर- चतुर्विंशतिस्तव से दर्शनविशुद्धि होती है ।
व्याख्यान भगवान् ऋपभदेव से लेकर भगवान महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थरो का स्तव करना, उनकी प्रार्थना करना या उनकी भक्ति करना चतुर्विशतिस्तव कहलाता है । चौबीस तीर्थङ्करो की स्तुति करने से जीव को क्या लाभ होता है? यह प्रश्न पूछा गया है । इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने फरमाया है कि चौबीस तीर्थङ्करो की स्तुति करने से दर्शन की विशुद्धि होती है।
तीर्थडुरो के स्तवन के अनेक भेद है। जैसे-नामस्तवन, स्थापनास्तवन, द्रव्यस्तवन, भावस्तवन, कालस्तवन,