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-सम्यक्त्वपराक्रम (२) चाहिए- । · सैनिक एकदम सही निगाना लगाना नही सीखी लेता, मगर सावधान होकर अभ्यास करता है और अन्त मे सफल निशानेबाज बन जाता है, इसी प्रकार जीवनसिद्धि का लक्ष्य साधने के लिए समभाव का निरन्तर अभ्यास करते रहना चाहिए । सैनिक अभ्यास करते-करते बहुत वार निशाना चूक जाता है, फिर भी उसको ध्यान तो लक्ष्य ताकने का ही होता है । इसी प्रकार जीवन मे पूर्ण समभाव न उतारा जा सके तो भी लक्ष्य यही होना चाहिए और शनै -शनैःही सही, पर उसी ओर अग्रसर होते जाना चाहिए'। "अभ्यास करते रहने से किसी दिन पूर्ण सामायिक प्राप्त होगी और जीवन, समभावमय बन जायेगा ।। सामायिक करते समय इतने समभाव-का-अभ्यास तो कर ही लेना चाहिए कि जब आप सामायिक मे बैठे हो और उस समय कोई आपको गालियाँ दे तो भी उस पर समभाव- रह सके । अगषके अन्त - करण से इतना समभाव आ जाये तो आपको समझना चाहिए कि अव हमारा तीर निशाने पर लगने, लगा है। । इससे विपरीत, मुहपत्ती. बाँधते-बाधते कानो मे निशान पड़ जाएँ और सामायिक करते-करते वर्षो व्यतीत हो जाएँ, फिर भी जब आप- सामायिक मे बैठे और कोई गाली दे तो आप समभाव न रख सके तो-समझना चाहिए कि आपका लक्ष्य कही है और आप तीर कही अन्य जगह मार रहे है। यहां तक जो कुछ कहा गया है वह देशविरति सामायिक को लक्ष्य मे रखकर ही कहा गया है। सर्वविरति सामायिक के लिए इससे भी अधिक समझना चाहिए । सर्वविरति सामायिक मे पूर्ण समभाव की आवश्यकता रहती है। ।
सामायिक अथवा समभाव का फल क्या है ? इस