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पांचवां बोल-३९
उसके रास्ते में था । सम्भव था वह आपके हाथ मे काट लेता । इसी कारण मैंने आपका हाथ हटा दिया।' चन्दनबाला ने फिर पूछा-'इस घोर अन्धेरी रात मे, काला साप तुम्हे कैसे दिखाई दिया ?'-इस अन्धेरी रात में काला सांप दिखाई देना चर्मचक्षु का काम नहीं है। क्या तुम्हे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया है ?' मृगावती ने उत्तर दिया- 'यह सब आपका ही प्रताप है।'
सती मृगावती मे कितना विनय और कैसा उज्ज्वलतर भाव था। परिश्रम तो आज भी किया जाता है, मगर उसकी दिशा उलटी है । अर्थात् अपने अपराध छिपाने के लिए परिश्रम किया जाता है । मृगावती जान बूझकर अपने स्थान से बाहर नही रही थी। अनजान मे बाहर रह जाने पर भी अपने को अपराधी मानना कितनी सरलता है ।
सती मृगावती को केवलज्ञान हुआ है, यह जानकर चन्दनबाला पश्चात्ताप करने लगी। उन्होने सोचा 'मैंने ऐसी उत्कृष्ट सती की उपालम्भ दिया और केवली की भी आमातना की । मुझमे यह बडा अपराध बन गया है । मैं अपना अपराध तो देखती नही, दूसरो को उपालम्भ देती हैं।' इस प्रकार पश्चात्ताप करती हुई सती चन्दनवाला ने मृगावती से कहा- 'मैंने आपकी अवज्ञा की है और मेरे कारण आपको कष्ट पहुंचा है। मेरा यह अपराध आप क्षमा करे । जब मैं अपना ही अपराध नही देख सकती तो दूसरो को किस बिरते पर उपालम्भ दे सकती हू ? ' मृगावती ने कहा- आपने मुझे जो उपालम्भ दिया उसी का तो यह प्रताप है । फिर अनन्तज्ञान प्रकट हो जाने पर भी गुरु-गुरानी का विनय तो करना ही चाहिए । अतएव आप किसी प्रकार