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सातवां बोल -७३
और अपुरस्कारभाव आने से पापो का नाश हो जाता है । इस प्रकार आत्मा जब अपुरस्कारभाव को अपनाती है तब वह अप्रशस्त योग से छूटकर प्रशस्त योग प्राप्त करती है ।
अप्रशस्त योग में से निकलकर प्रशस्त योग में प्रवेश करना साधारण बात नही । है । धूल के रुपये बनाये जा सकते है, मगर अप्रशस्त को प्रशस्त बनाना उससे भी कही कठिन कार्य है । आपने बाजीगरी को धूल से रुपया बनाते देखा होगा । वह तो सिर्फ हस्तकौशल है । अगर वह धूल से रुपया बना सकते तो पैसे-पैसे के लिए क्यो भीख मागते फिरते ? यह वस्तुस्थिति स्पष्ट होने पर भी बहुतेरे लोग ऐसी बातो मे चमत्कार मानते हैं और कहते है कि चमत्कार को ही नमस्कार किया जाता है । इस भावना से प्रेरित होकर लोग ढोग को भी चमत्कार मानने लगते हैं और इस प्रकार के ढोग के पीछे लोग और विशेषत स्त्रियाँ पागल बन जाती हैं । इस प्रकार अन्धे होकर ढोग के पोछे दौड़ने का अर्थ यह है कि अभी तक परमात्मा के प्रति पूर्ण और दृढ विश्वास उत्पन्न नही हुआ है । परमात्मा के प्रति सुदृढ विश्वास उत्पन्न हो जाने पर यह स्थिति उत्पन्न नही होती । आशय यह है कि लोग इस प्रकार ढोग मे तो पड जाते हैं किन्तु अपनी आत्मा को नही देखते कि हमारी आत्मा मे क्या है ? भक्तजन यह बात ध्यान मे रखकर ही यह कहते है
रे चेतन । पोते तु पापी, परना छिद्र चितारेजी । भक्तजनो ने अपनी आत्मा को यह चेतावनी दी है' हे आत्मनू । तेरे पापो का पार नही है । फिर भी तू अपने