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सातवां बोल-७१ करने से यदि निन्दा होती है और शास्त्रकार भी गर्दा का फल अपुरस्कार बतलाते है तो गर्दा करने से लाभ के बदले हानि ही समझना चाहिए। अपमान से बचने के लिए लोग वडे-बडे पाप करते है, तो फिर अधिक निन्दा करने के लिए गर्दा क्यो की जाये ?
इस प्रश्न का उत्तर यह है । वास्तव में बडे बडे पाप निन्दा से बचने के लिए ही किये जाते है । मैं तो यहा तक मानता हू कि कई-एक मत-मतान्तर भी अपने पापो को पुण्य प्रमाणित करने के लिए चल रहे है अथवा इसीलिए चलाये गये है कि उनके चलाने वाले निन्दा से बच जाएँ । अर्थात अपते पाप दबाने के लिए या उन पर पुण्य का पालिश चढाने के लिए ही अनेक मत-मतान्तर चलाये गये हैं। बात खराब है, यह जानते हुए भी उसे न छोडना फिर भी जनता मे अपना स्थान उच्च बनाये रखना, इस उद्देश्य से पाप को धर्म का रूप दिया जाता है और उसी को सिद्धान्त के रूप मे स्वीकार कर लिया जाता है । देखा जाता है कि लोम' अपनी भलमनसाई प्रकट करने के लिए और अपनी गरीबी दबाने के लिए नकली मोती या रोल्डगोल्ड की माला पहन लेते हैं । इस पद्धति से स्पष्ट प्रतीत होता है कि लोग सन्मान चाहते हैं । इस प्रकार सन्मानलाभ की भावना से ही पाप को पुण्य का रूप दिया जाता है और पाप को धार्मिकसिद्धान्त के आसन पर आसीन कर दिया जाता है। किन्तु गर्दा करने वाला व्यक्ति इस प्रकार की भावना का परित्याग कर देता है और अपुरस्कारभाव धारण करता है। जो सन्मान की कामना से ऊपर उठ चुका है और अपमान का जिसे भय नहीं है, बल्कि जो अपमान चाहता है। वहीं व्यक्ति गर्दा कर सकता है ।