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सातवां बोल-७७
गिडगिड़ाकर कहने लगा-मैंने आपके पिता का घात अघश्य किया है, फिर भी मैं आपके शरण आया है।
क्षत्रिय शरणागत को नही मारता । इस सम्बन्ध में मेवाढ मे एक किंवदन्ती प्रसिद्ध है । मुगल बादशाह मेवाड के महाराणा का शत्रु था । किन्तु जब महाराणा बादशाह को मारने लगे तो बादशाह बोला - मैं आपकी गाय ह । वादगाह के मुख से यह दीनतापूर्ण शब्द सुनकर राणा ने उसे छोड़ दिया। दूसरे लोगों ने राणा से कहा- आप यह उचित नही कर रहे हैं। किन्तु राणा ने उन्हे उत्तर दियाशत्रुओ का सहार करने वाले तो बहुत मिलेगे मगर शरणागत शत्रु की रक्षा करने वाले विरले ही होंगे । शरणागतो की रक्षा करना क्षत्रियो का धर्म है। मैं इस धर्म की उपेक्षा नही कर सकता।
शरणागत क्षत्रिय ने, क्षत्रियकुमार से कहा- मै आपके शरण आया हूं । यह शब्द सुनकर क्षत्रियकुमार उसे मार न सका । उसे उसने बाध लिया और अपनी माता के पास ले आया । आकर माता से कहा - लो, यह मेरा शत्रु है। कहो, इसे क्या दण्ड दिया जाये ? अपने पुत्र का पराक्रम देख माता की प्रसन्नता का पार न रहा । उसने कहाइसी से पूछ देखना चाहिए कि यह क्या दण्ड पसन्द करता है।
इस प्रकार कहकर माता ने अपने पति के घातक क्षत्रिय से पूछा- वोल, तुझे क्या दण्ड मिलना चाहिए ? क्षत्रिय ने उत्तर दिया- मा, शरणागत को जो दण्ड देना उचित हो, वही दण्ड मुझे दीजिए।