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सातवां बोल-८१
_ को साथ करके की जाने वाली गर्दा पूर्ण गर्दा है। अन्यथा गर्दा के चार भग हो जाते है । वह इस प्रकार
(१) मन से गर्दा करना वचन से न करना। (२) वचन से गर्दा करना मन से न करना । (३) मन से भी गर्दा करना वचन से भी करना ।
(४) मन से भी गर्दा न करना वचन से भी न करना । (यह भग शून्य है)
कभी-कभी वचन से तो गर्दा नही होती किन्तु मन मे गर्दा हो जाती है। जैसे प्रसन्नचन्द्र राजर्षि नीची स्थिति मे जाने के योग्य विचार कर रहे थे। उसी समय उनका हाथ अपने मस्तक पर जा पहुँचा । मस्तक पर मुकुट न पाकर उन्होने मन ही मन ऐसी गर्दा की कि उसी समय केवली हो गये । इस प्रकार एक गर्दा ऐसी होती है जो वचन से तो नही होती, सिर्फ मन से होती है । दूसरी गर्दा ऐसी होती है जो मन से नही की जाती, सिर्फ वचन से की जाती है। ऐसी गर्दा द्रव्यगर्दा कह नाती है । वचन से न होकर भी मन से होने वाली गर्हा तो ठीक है मगर मन से गर्दा न करके केवल वचन से कह देना कि 'मुझसे अमुक दुष्कर्म हो गया है', एक प्रकार का दम्भ ही है । मन में जुदा भाव रखना और वचन से गर्दा करना द्रव्यगीं है, जो दूसरो को ठगने के लिए की जाती है। दूसरो को ठगने के लिए की जाने वाली द्रव्यगर्दा के अनेक उदाहरण शात्रकारो ने बतलाये है।
कल्पना कीजिए, कोई पुरुष मर गया है । उसका किसी दूसरी स्त्री के साथ अनुचित सम्बन्ध था । जब मृत पुरुष की लाश उस स्त्री के घर के सामने होकर निकली