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सातवां बोल-८५
प्राय यही कहा गया है कि आत्मा का मूल स्वरूप कैसा है लेकिन वह कैसी स्थिति में आ पड़ा है ? आत्मा को कितनी अनुकूल सामग्री उपलब्ध है, लेकिन आत्मा उसका कैसा उपयोग कर रही है | आत्मा का कार्य यह बडा ही विपरीत है। राजा ने प्रसन्न होकर किसी को उच्चकोटि की गजवेल की तलवार भेट की । मगर भेट लेने वाला ऐसा मूर्ख निकला कि उस तलवार से घास काटने लगा । क्या उसका यह कार्य तलवार का दुरुपयोग करना नहीं है ? इसी प्रकार आत्मा को यह मानव-शरीर ऐसा मिला है जो ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है। तीर्थङ्कर-अवतार आदि समस्त पुरुष इसी शरीर मे हुए हैं। ऐसा उत्कृष्ट शरीर पाकर भी यदि विषयकषाय मे इसका उपयोग किया गया तो अन्त मे पश्चात्ताप करना पडेगा । जो मनुष्य जन्म का माहात्म्य समझेगा और आत्मकल्याण साधना चाहेगा, वह सच्चे हृदय से गर्दा किये विना रह ही नही सकता ।
मेरी ऐसी धारणा है कि यदि मनुष्य अपने सुबह से शाम तक के काम किसा विश्वस्त मनुष्य के समक्ष प्रकट कर दिया करे तो उसके विचारो और कार्यों में वहत प्रशस्तता आ जायेगी । गृहस्थो को और कोई न मिले तो पतिपत्नी आपस मे ही अपने-अपने कार्य एक दूसरे पर प्रकट कर दिया करे तो उन्हे अवश्य लाभ होगा । अपने कृत्य प्रकाशित करने से विचारो का आदान-प्रदान होता है और दोषो की शुद्धि होने से जीवन उन्नत बनता है।
गर्दा जीवनशुद्धि की कु जी है। भगवान् ने कहा है कि गर्दा करने से आत्मा पवित्र बनती है । गर्हा से यात्मा किसी भी अवस्था में पतित नही होती वरन् उन्नत ही होती