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छठा बोल-५६
स्थान दिया जाये तो कल्याण अवश्यम्भावी है।
सच्चा अहिंसा का पालन करने वाला पापों के प्रायश्चित्त से कभी पीछे नही हटेगा। पापो का पश्चात्ताप करने से पापो के प्रति अरुचि उत्पन्न होती है और पापो के प्रति अरुचि होने से आत्मा अपूर्वकरण गुणश्रेणी प्राप्त करता है।
अपूर्वकरण गुणश्रेणी किस प्रकार प्राप्त होती है, यह बात आध्यात्मिकता का रहस्य जानने वाला ही भलीभांति जान सकता है। दूसरे के लिए समझना कठिन है । जैसेहमारे उदर मे अन्न जाता है, किन्तु उस अन्न मे क्या-क्या परिणमन होते हैं, अन्न किस प्रकार पचता है, रसभाग और - खल-भाग किस-किस प्रकार अलग होते हैं, नाक, कान, आख
आदि इन्द्रियो को किस प्रकार अपना-अपना भाग मिलता है, यह बात हम नही देख सकते। इसी प्रकार हम यह भी नही देख सकते कि कर्म आत्मा को किस प्रकार क्या करते हैं । मगर ज्ञानी पुरुष यह सब जानते हैं । कर्म आत्मा में क्या परिणित उत्पन्न करते हैं, यह बात आप ज्ञानियो के वचन हर श्रद्धा करके ही मान सकते हैं। वैद्य किसी रोग का उपशम करने के लिए औपध देता है। रोगी वैद्य पर विश्वास करके ही औषध सेवन करता है। रोगी स्वय नहीं देख सकता कि औषध पेट मे जाकर क्या क्रिया करती है; सिर्फ हकीम पर श्रद्धा रखकर सेवन करता जाता है। इसी प्रकार कर्म किस प्रकार क्रिया करते हैं और उनका विनाश किस प्रकार होता है यह बात हम नहीं देख सकते । तथापि जानी पुरुष तो सम्यक् प्रकार से जानते ही है । तुम दवा द्वारा होने वाली क्रिया नही देख सकते किन्तु दवा से होने वाला परिणाम अवश्य देख सकते हो । इसी तरह आत्मा