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छठा बोल - ६७
और इसका कारण यही है कि मेरी धर्म तुला ऐसा करने के लिए मुझे बाध्य करती है
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मित्रो ! आपको भी युधिष्ठिर के समान क्षमा धारण करनी चाहिए या नही ? अगर आज ऐसी क्षमा का व्यवहार करना आपके लिए शक्ा न हो तो कम से कम श्रद्धा मे तो क्षमा रखी ही जा सकती है । क्षमा पर परिपूर्ण श्रद्धा रखना तो सम्यग्दृष्टि का स्वाभाविक गुण है । सब पर समभाव रखने वाला ही सम्यग्दृष्टि कहलाता है । समभाव धारण करने वाले में इसी प्रकार की क्षमा की आवश्यकता है । आज आप लोगो के व्यवहार में इस क्षमा के दर्शन नही होते, मगर युधिष्ठिर जैसों के चरित्र मे वह मिलती ही है । अतएव उसकी शक्यता के सम्बन्ध में शका नहीं उठाई जा सकती ।
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