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५८-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
जानवर अपशु हैं।' इस कथन का अर्थ यह नही है कि गाय और घोडा के सिवाय अन्य जानवरो मे पशुत्व का अभाव है । इस कथन का सही अर्थ यह है कि अन्य जानवर उत्तम पशु नही हैं । गाय और घोडा को छोडकर अन्य पशु उत्तम पशु नही हैं । यही कहने वाले का अभिप्राय है।
नत्र का छठा अर्थ है-विरोधी वस्तु को बतलाना। जैसे 'अधर्म' शब्द कहने से धर्म का अभाव नही समझा जा सकता, वरन धर्म का विरोधी अधर्म अर्थात पाप अर्थ ही समझना संगत होता है ।।
अहिंसा का अर्थ भी इसी नियम के अनुसार होगा और इस कारण अहिसा का अर्थ हिंसा का विरोधी अर्थात् रक्षा अर्थ ही उपयुक्त है । इसी अर्थ को दष्टि मे रखकर भास्त्रकारो ने रक्षा को अहिसा का पर्यायवाचक शब्द वतलाया है । ऐसा होते हुए भी कई लोग अहिंसा का अर्थ 'हिंसा न करना' ही कहते है । वे रक्षा को अहिंसा के अन्तर्गत नही मानते । यह उनकी भूल है। हिंसा का विरोधी अर्थ रक्षा है । रक्षा अहिंसा के ही अन्तर्गत है । शास्त्रो में रक्षा के ऐसे-ऐसे उदाहरण मोज़द है कि उन्हे पढ कर चकित रह जाना पडता है । राजा मेघरथ द्वारा कबूतर को रक्षा। करने का उदाहरण अद्वितीय है । मेघरथ राजा ने अपना शरीर दे देना स्वीकार किया मगर शरणागत कबूतर को देना स्वीकार नही किया । अहिंसा का यह जीवित स्वरूप है । मृत अहिंसा किसी काम की नही होती । आज अहिंसा को कायरता की पोशाक पहनाया जाता है। मगर जो हिंसा का विरोध न करे वह अहिसा ही नही । अहिसा सदा जीवित ही होनी चाहिए । जीवित अहिंसा को जीवन मे