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छठा बोल-५७
है । इस प्रकार अहिंसा का अर्थ करने से पूर्वोक्त दोषो मे से कोई दोष नही आता । अत: अहिसा का अर्थ हिंसाविरोधी-रक्षा अर्थ करना युक्तिसगत और शास्त्रानुकूल प्रतीत होता है । विद्वानो ने नत्र समास के छह अर्थ बतलाये हैं। उनका कहना है
तत्सादृश्यमभावश्य तदन्यत्व तदल्पता । अप्राशस्त्यं विरोधश्च नार्थाः षट् प्रकीत्तिताः॥
अर्थात् नत्र के छह अर्थ है। उनमे पहला अर्थ हैतत्सादृश्य- उसी जैसा । यथा 'अव्राह्यण' कहने से ब्राह्मण के समान क्षत्रिय आदि अर्थ होता है, पत्थर आदि अर्थ नही हो सकता ।
नज का दूसरा अर्थ 'अभाव' है। जैसे ‘अमक्षिका' कहने का अर्थ 'मक्खी का अभाव' होता है।
नत्र का तीसरा अर्थ 'तदन्यत्व' अर्थात् 'उससे भिन्न है । जमे - 'अनश्व' कहने से घोडे से भिन्न दूसरा ( गया आदि ) अर्थ समझा जाता है ।
नञ् का चौथा अर्थ 'तदल्पता' अर्थात् 'कमी' होता है । जैसे-'अनुदरा कन्या ।' 'अनुदरा कन्या' का सामान्य अर्थ है-बिना पेट की कन्या । परन्तु बिना पेट का कोई भी मनुष्य नही हो सकता, अतएव 'अनुदरा कन्या ' कहने का अर्थ होगा 'छोटे पेट वाली कन्या ।' यहाँ 'अनुदरा' शब्द पेट का अभाव नही बतलाता वरन् उदर की अल्पता बतलाता है।
नत्र का पाचवा अर्थ है-अप्रशस्तता । जसे - 'अपशवोऽन्येऽगोऽश्वेभ्य' अर्थात् 'गाय और घोडा के सिवाय अन्य