________________
५२ - सम्यक्त्वपराक्रम (२)
तो प्रत्यक्ष ही है । आत्मनिन्दा करने वाले के अन्तःकरण मे पश्चात्ताप पैदा होता है कि-'हाय । मुझमे यह दुष्कृत्य 1 वन गया
1
पश्चात्ताप ही आत्मनिन्दा की सच्ची पहचान है । जब पश्चात्ताप हो तो समझना चाहिए कि सच्चे हृदय से आत्मनिन्दा की गई है । जि हे दुष्कृत्यों के प्रति अनुराग होगा, उनके हृदय में परचात्ताप न होना स्वाभाविक ही है और जिन्हे पश्चात्ताप नही होता, कहना चाहिए कि उन्होंने वास्तव में आत्मनिन्दा ही नही की है ।
1
पञ्चात्ताप करने से क्या लाभ है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा है- पश्चात्ताप से वैराग्य उत्पन्न होता है और जव वैराग्य उत्पन्न होता है तो हृदय में सासारिक - पदार्थो का महत्व नही रहता । सासारिक पदार्थों के प्रति ममता न होना पश्चाताप का लक्षण है । जब यह ममता हट जाये तो समझना चाहिए कि हृदय में सच्चा पश्चात्ताप 'हुआ है ।
जो वस्तु एक बार सच्चे हृदय से खराव मान ली जाती है, उसके प्रति फिर रुचि नहीं होती । उदाहरणार्थतुम्हारे सामने भाति भाति का भोजन आया । मगर उसी समय किसी ने तुम्हे भोजन में विप होने की सूचना दी । - क्या इस अवस्था मे उस भोजन के प्रति आपकी रुचि दौड़ेगी? ठीक इसी प्रकार जब वास्तविकता का ज्ञान होता है और विवेक जागृत होता है तब ससार के किसी भी पदार्थ की ओर रुचि नही दौड सकती । जब तक विवेक जागृत नही हुआ है, तभी तक सासारिक पदार्थो की ओर रुचि जाती
| विवेक होने पर वही पदार्थ दुखरूप दिखाई देने लगते