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४२-सम्यक्त्वपराक्रम (२)
और वैराग्य का उदय होता है। ऐसा विरक्त पुरुष अपूर्वकरण की श्रेणी (क्षपकश्रेणी) प्राप्त करता है और वह श्रेणी प्राप्त करने वाला अनगार मोहनीयकर्म का क्षय करता है।
-: व्याख्यान :आलोचना के विषय में प्रश्नोत्तर करने के पश्चात् निदा के विषय में प्रश्नोत्तर किस अभिप्राय से किया गया
है ? इस विषय मे टीकाकार कहते हैं कि आलोचना के अन। न्तर आत्मनिन्दा करनी ही चाहिए, क्योकि आत्मनिन्दा करने • से ही आलोचना सफल होती है । सच्ची बात वही मानी • जाती है जो आत्मनिन्दापूर्वक की गई हो ।
ज्ञानीपुरुषों का कथन है कि जो शक्ति पराई निन्दा में खर्च करते हो, वह आत्मनिन्दा में ही क्यों नही लगाते ? आत्मनिन्दा के बिना की जाने वाली आलोचना, ढोग के अतिरिक्त और कुछ भी नही है । ऐसी आलोचना में पोल रहती है और एक न एक दिन पोल खुले बिना नही रह सकती । अतएव आलोचना के साथ आत्मनिन्दा भी करनी चाहिए।
प्रश्न हो सकता है-जब आत्मा ने किसी प्रकार का * कुकृत्य किया हो तो आत्मा की निन्दा करना उचित है । अगर कोई कुकृत्य ही न किया हो तो आत्मनिन्दा की क्या आवश्यकता है ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए टीकाकार कहते हैं-कोई पूर्ण पुरुष ही ऐसा हो सकता है जिसने किसी भी प्रकार का अपराध या दुष्कृत्य न किया हो । छद्मस्थ पुरुष से तो किसी न किसी प्रकार का अपराध हो ही जाता है । अतएव उस अपराध को छिपाने का प्रयत्न न करते हुए