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है। हमें उस वक्त की याद आ रही है जब हमारे ससुर जी को पट्टाभिषिक्त किया गया था; वह दृश्य प्रत्यक्ष हो रहा है। कितने लोग ! क्या व्यवस्था थी। कितना उत्साह, कितना सन्तोष !"
" बल्लाल प्रभु का विजयोत्सव भी इतना ही वैभवपूर्ण था । "
बब
'वह सब पुरानी बातें याद आ रही हैं।"
" इस समारम्भ के समाप्त होने पर हम यानी मैं, मेरे भाता-पिता और आप तीनों
और रेविमय्या, हम इतने लोग श्रवणबेलगोल चलें, यह मेरी अन्तरंग अभिलाषा हैं । "
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महाराज ?"
"युद्ध निकट हो तो युद्धक्षेत्र, नहीं तो यादवपुरी जाएँगे।"
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'यादवपुरी में क्या खास बात है ?"
"
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'कुछ नहीं। अभी हाल में वहीं विवाह हुआ था। कहते हैं कि जब कभी वे वहाँ रहते हैं तब उन्हें हमारे दाम्पत्य के शुरू-शुरू के दिन याद हो आते है ।' 'सहज ही तो हैं। पर आप साथ न हों तो केवल याद आने से भला क्या
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लाभ?”
" वही स्मृति अपनी उस नवविवाहिता के साथ रहने में भी तो सहायक हो सकती है।"
"हम क्या जानें! इस समारम्भ के अवसर पर आचार्य जी आएँगे न ?" "नहीं, वे उत्तर की यात्रा पर गये हैं।"
"वहाँ भी उनके भक्त हैं ?"
"मुझे मालूम नहीं।"
"फिर इस यात्रा का प्रयोजन ?"
"सुनते हैं वहाँ, दिल्ली के बादशाह के पास उनके चेलुवनारायण हैं। उन्हें लाने के लिए जा रहे हैं। स्वप्न में चेलुवनारायण ने आकर आदेश दिया है- जाने से पहले यही खबर भेजी थी।"
"मुसलमानों के पास चेलुवनारायण ?"
"उन्होंने कहा तो अविश्वास कैसे करें 21
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'सब अजीब है।"
" और भी अनेक अजीब बातें हैं ।"
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* तो इन अजीब बातों का कोई आदि-अन्त नहीं ?"
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'असाध्य जब साध्य हो जाए तो विचित्र तो लगता ही है। जब हम प्रत्यक्ष देखेंगे तब मान्यता देनी ही होगी।"
"वही जैसे हमारी माँ ने उस वामशक्ति पण्डित को मान्यता दी ?"
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'उसके साथ इसकी तुलना नहीं हो सकती। वह समाजद्रोही, देवद्रोही था। ये
26 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार