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हममें कोई ऐसी कटता नहीं आयी और न ही इससे कोई अड़चन पैदा हुई है।"
"फिलहाल ऐसा हो सकता है। यह नहीं कह सकते कि सदा ऐसा ही रहेगा। हम सभी बहनें ही एक-दूसरे के साथ सहयोगपूर्ण जीवन नहीं बिता सकी। ऐसे में..."
"उसका कारण है।" "क्या?"
आप लोगों में प्रत्येक ने यहां चाश--महाराज मेर ही पास बने रहें । परन्तु हम सोचती हैं कि दूसरों को भी महाराज का सान्निध्य-सुख मिले।"
"मगर हमारे जैसे स्वभाववाली आ जाएँ तो?1 "हम संन्यास ले लें तो हो जाएगा।" "अच्छा, आपसे बातचीत में कौन जीत सकता है? यह नयी रानी कौन है?"
"कौन है सो स्वयं वही नहीं जानती। हमारे ये महाराज आचार्यश्री जी के शिष्य हैं न? उस मत से सम्बन्धित कार्यों के लिए उसी मत-सम्प्रदाय की स्त्री का होना ठीक समझकर, अन्दर ही अन्दर षड्यन्त्र रचकर, महाराज को आचार्य के समक्ष एक सन्दिग्ध परिस्थिति में डाल दिया। इसी कारण यह विवाह हुआ।"
"तो मतलब यही हुआ कि पहले की तरह तुमने स्वयं यह विवाह नहीं कराया।"
'नहीं। तब आप उसका निवारण करना चाहती थीं। मैं खुद आगे बढ़ी और वह विवाह हुआ। परन्तु इस बार मैं इस स्थिति में नहीं थी कि मना करूँ। पहले राजपरिवार अपने पूर्वजों के ही मत का अनुसरण करता रहा। परन्तु अपनी बेटी की वजह से वचनबद्ध हो जाने से मतान्तरित सन्निधान, और हप ऐसी दुविधा में पड़ गये कि विवाह के लिए यदि स्वीकृति न देती तो लोगों की दृष्टि में मतान्ध मानी जाती। अन्य मतों के प्रति मैं असहिष्णु कहलाती।"
"आपकी बातों को सुनने पर यही लगता है कि आपने अपने आँचल में आग बाँध रखी है।"
"वह कोई आग नहीं। और फिर, जलने पर भी ऊपर से हवा करने वाले न हों तो वह जल-जल कर वहीं भस्म हो जाएगी।"
"बहुत बड़ा साहस है आपका।"
"हम सब दूसरों की बुराई नहीं चाहती तो कोई हमारी बराई नहीं कर सकता, यह आत्मविश्वास है।"
"हमारी भी यही इच्छा है कि आपको किसी तरह का मानसिक दु:ख न हो।"
"मेरे लिए यही शीर्वाद पर्याप्त हैं। अब आप आराम करें। यात्रा की थकावट बहुत हुई है। अभी-अभी राजमहल का बहुत परिष्करण हुआ है। अतिथियों के लिए अलग अन्तःपुर और विश्रापामार बनवाये गये हैं।"
"राजमहल राष्ट्र का प्रतीक है। उसका विस्तृत और परिष्कृत होना उचित ही
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 25