Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् यहां 'श्रा पाके' (भ्वा०प०, अदा०प०) से निष्ठा प्रत्यय परे होने पर 'श्रा' को 'शृ' आदेश निपातित है। यह एक व्यवस्थित विभाषा है अत: क्षीर और हवि अर्थ अभिधेय में 'श्रा' को नित्य 'शृ' आदेश होता। अन्यत्र नहीं होता जैसे-श्राणा यवागूः । पकी हुई राबड़ी। पी-आदेशः
(१६) प्यायः पी।२८। प०वि०-प्याय: ६।१ पी १।१ (सु-लुक्)।। अनु०-धातो:, निष्ठायाम्, विभाषा इति चानुवर्तते । अन्वय:-प्यायो धातोर्निष्ठायां विभाषा पी:। .
अर्थ:-प्यायो धातो: स्थाने निष्ठायां परतो विकल्पेन पी-आदेशो भवति।
उदा०-पीनं मुखम् । पीनौ बाहू। पीनमुर: । आप्यानश्चन्द्रमाः ।
आर्यभाषा: अर्थ- (प्याय:) प्याय (धातो:) धातु के स्थान में (निष्ठायाम्) निष्ठा प्रत्यय परे होने पर (विभाषा) विकल्प से (पी) पी-आदेश होता है।
उदा०-पीनं मुखम् । मोटा मुख । पीनौ बाहू । मोटी भुजायें। पीनमुदरम् । मोटा पेट। आप्यानश्चन्द्रमा: । बढ़ा हुआ चन्द्रमा।
सिद्धि-(१) पीनम् । प्याय्+क्त। पी+त। पी+न। पीन+सु। पीनम् ।
यहां 'ओप्यायी वृद्धौ' (भ्वा०आ०) से निष्ठा' (२।२।२६) से भूतकाल में निष्ठा-संज्ञक 'क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से प्याय्' धातु के स्थान में 'पी' आदेश है। ओदितश्च' (८।२।४५) से निष्ठा के तकार को नकार आदेश होता है।
(२) आप्यानः। यहां आङ् उपसर्गपूर्वक 'प्याय् धातु से पूर्ववत् क्त' प्रत्यय है। इस सूत्र से विकल्प पक्ष में प्याय्' के स्थान में 'पी' आदेश नहीं है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
यह एक व्यवस्थित विभाषा है, अत: यहां उपसर्गरहित 'प्याय्' धातु को नित्य 'पी' आदेश होता है और उपसर्गसहित प्याय्' धातु को 'पी' आदेश नहीं होता है। पी-आदेश:
(१७) लिड्यडोश्च ।२६ | प०वि०-लिट्-यडोः ७।२ च अव्ययपदम् ।
स०-लिट् च यङ् च तौ लिड्यङौ, तयो:-लिड्यडोः (इतरेतरयोगद्वन्द्वः)।