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पञ्चाध्यायी।
[ दूसरी नहीं मानते । परंतु परोक्ष पदार्थोके स्वीकार किये विना पदार्थोकी व्यवस्था ही नहीं बन सकती परोक्ष पदार्थोकी सत्ता अनुमान और आगमसे मानी जाती है । अविनाभावी हेतुसे अनुमान प्रमाण माना जाता है और स्वानुभवन, अखंडयुक्ति तथा अवाधकपनेसे आंगम प्रमाण माना जाता है।
मूर्तका लक्षणस्पर्शी रसश्च गन्धश्च वर्णोऽमी मूर्तिसंज्ञकाः।
तद्योगान्मूर्तिमद्रव्यं तद्योगादमूर्तिमत् ॥ ९॥
अर्थ-रूप, रस, गन्ध, वर्णका नाम ही मूर्ति है। जिसमें मूर्ति पाई जाय वही मूर्त द्रव्य कहलाता है और जिसमें रूप, रप्त, गन्ध, वर्णरूप मूर्ति नहीं पाई जाय वही अमूर्त द्रव्य कहलाता है।
भावार्थ-पुद्गलमें रूप, रस, गन्ध वर्णरूप मूर्ति पाई जाती है इसलिये वह मूर्त कहलाता है। बाकी द्रव्योंमें उपर्युक्त मूर्ति नहीं पाई जाती इसलिये वे अमूर्त हैं।
मूर्तका ही इन्द्रिय प्रत्यक्ष होता है--- नासंभवं भवदेतत् प्रत्यक्षानुभवाद्यथा।
सन्निकर्षोस्ति वर्णाचैरिन्द्रियाणां न चेतरैः ॥ १० ॥ ___ अर्थ-इन्द्रियोंका *रूपादिकके साथ ही सम्बन्ध होता है और दूसरे पदार्थों के साथ नहीं होता यह बात असंभव नहीं है किन्तु प्रत्यक्ष और अनुभवसे सिद्ध है।
अमूर्त पदार्थ है इसमें क्या प्रमाण है ? नन्वमूतीर्थसद्भावे किं प्रमाणं वदाद्य नः।
यदिनापीन्द्रियाणां सन्निकर्षात् खपुष्पवत् ॥११॥ अर्थ यहां पर शङ्काकार कहता है कि अमूर्त पदार्थ भी हैं इसमें क्या प्रमाण है . क्योंकि जितने पदार्थ हैं उन सबका इन्द्रियों के साथ सम्बन्ध होता है। अमूर्त पदार्थका इन्द्रि? योंके साथ सम्बन्ध नहीं होता है इसलिये उसका मानना ऐसा ही है जिस प्रकार कि आकाशके फूलोंका मानना ।
भावार्थ-जिस प्रकार आकाशके फूल वास्तवमें कोई पदार्थ नहीं है, इसलिये उनका इन्द्रिय प्रत्यक्ष भी नहीं होता । इसी प्रकार जब अमूर्त पदार्थ भी कोई वास्तविक पदार्थ नहीं है, यदि अमूर्त पदार्थ वास्तवमें होता तो घट वस्त्र आदि पदार्थोकी तरह उसका भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष होता।
* मूर्तिमान पदार्थ ।