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पञ्चाध्यायी ।
[ दूसरी
atta रूप द्रव्य इनके अर्थ हैं । सामान्य रीतिसे दो ही द्रव्य हैं एक जीव और दूसरा अजीव, परन्तु विशेष रीति से अजीवके ही पांच भेद हैं- पुद्गल धर्म, अधर्म, आकाश और काल । इस प्रकार कुल छह द्रव्य हैं। इनमें जीव द्रव्य तो ज्ञान दर्शन वाला हैं बाकीके द्रव्य ज्ञान दर्शन रहित ( जड़ ) हैं । इसीलिये जीवको छोड़कर सब अजीव में ग्रहण कर लिये जाते हैं ।
जीव अजीवकी सिद्धि -
नासिर्द्ध: सिद्धदृष्टान्ताच्चेतनाऽश्वेतनद्वयम् । जीवपुर्घटादिभ्यो विशिष्टं कथमन्यथा ॥ ४॥
अर्थ- जीव और अजीव अथवा चेतन और अचेतन ये दो पदार्थ हैं यह बात असिद्ध नहीं हैं प्रसिद्ध दृष्टान्तसे जीव और अजीव दोनोंकी सिद्धि हो जाती हैं । यदि जीव और अभी दोनोंको जुदे जुदे न मानकर एक रूप ही मान लिया जाय तो जीते हुए शरीरमें और घट वस्त्र आदिक जड़ पदार्थोंमें प्रत्यक्ष अन्तर दीखता है वह नहीं दीखना चाहिये इस प्रत्यक्ष भेदसे ही जीव और अजीवकी भिन्न भिन्न सिद्धि हो जाती है ।
भावार्थ - यद्यपि आत्मा अनन्त गुणात्मक अमूर्त पदार्थ है । इसलिये उसका प्रत्यक्ष नहीं हो सक्ता है । तथापि अनादिकालसे मूर्त कर्मोंका सम्बन्ध होनेसे संसारी आत्मा शरीर में अनुमान प्रमाण और स्वानुभवसे जाना जाता है । प्रत्येक संसारी आत्मा जैसा शरीर पाता है. उसी प्रमाण रहता है । जिस शरीर में आत्मा हैं वहीं शरीर जीवित शरीर कहलाता है । जीवित शरीरमें जो जो क्रियायें होती हैं वे ही क्रियायें आत्माकी सिद्धिमें प्रमाण हैं । किसी
के विषय में प्रश्न करनेपर ठीक ठीक उत्तर मिलनेसे तथा समझ पूर्वक काम करनेसे, चतुरता पूर्वक बोलनेसे आदि सभी बातोंसे भले प्रकार सिद्ध होता है कि शरीर विशिष्ट आत्मा जुदा पदार्थ है और घट पटादिक जड़ पदार्थ जुड़े हैं ।
जीव सिद्धिमें अनुमान -
अस्ति जीवः सुखादीनां संवेदन समक्षतः ।
यो नैवं स न जीवोस्ति सुप्रसिद्धो यथा घटः ॥ ५ ॥
अर्थ - जीव एक स्वतन्त्र पदार्थ है इस विषय में सुखादिकोंका स्वसंवेदन ज्ञान ही प्रमाण हैं जो सुखादिकका अनुभव नहीं करता है वह जीव भी नहीं है, जिस प्रकार कि एक घड़ा ।
भावार्थ- मैं सुखी हूं अथवा मैं दुःखी हूं, इस प्रकार आत्मामें मानसिक स्वसंवेदन (ज्ञान) प्रत्यक्ष होता है। सुख दुःखका अनुभव ही आत्माको जड़से भिन्न सिद्ध करता है । घटक आदिक जड़ पदार्थों में सुख दुःखकी प्रतीति नहीं होती है इसलिये वे जीव भी नहीं हैं । इस व्यतिरेकव्याप्तिसे सुख दुःखादिकका अनुभव करनेवाला जीव पदार्थ सिद्ध होता है।