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अध्याय । ]
सुबोधिनी टीका ।
इति हेतुनाथेन प्रत्यक्षेणावधारितः ।
साध्यो जीवस्स्वसिद्ध्यर्थमजीवश्च ततोऽन्यथा ॥ ६ ॥ अर्थ - जीवः अस्ति स्वसंवेदनप्रत्यक्षत्वात् " पूर्वोक्त श्लोकके अनुसार इस अनुमानसे जीवकी सिद्धि होती है। ऊपरके अनुमान वाक्यमें स्वसंवेदन हेतु प्रत्यक्षरूप है। जीवक अस्तित्व (सत्ता) साध्य है । जिसमें पूर्वोक्त स्वसंवेदन प्रत्यक्ष रूप हेतु नहीं है वह जीवसे भिन्न अजीव पदार्थ ह ।
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मूर्त तथा अमूर्त द्रव्यका विवेचनमूर्तमूर्तविशेषश्च द्रव्याणां स्यान्निसर्गतः ।
स्यादिन्द्रियग्राह्यं तदग्राह्यममूर्तिमत् ॥ ७ ॥
अर्थ - छहों द्रव्योंमें कुछ द्रव्य तो मूर्त हैं और कुछ अमूर्त हैं द्रव्योंमें यह मूर्त और अमूर्तका भेद स्वभावसे ही है किसी निमित्तसे किया हुआ नहीं है । जो इन्द्रियोंसे जाना जाय उसे मूर्त कहते हैं और जो इन्द्रियोंके गोचर न हो उसे अमूर्त कहते हैं।
भावार्थ– द्रव्योंमें मूर्त और अमूर्त व्यवस्था स्वाभाविक हैं । जिसमें रूप, रस, गन्ध, और स्पर्श पाया जावे उसे ही मूर्त कहते हैं । इसी लिये दूसरी रीतिसे मूर्तका लक्षण यह बतलाया है कि जो इन्द्रियोंसे ग्रहण हो सके वही मूर्त है मूर्तद्रव्यके उपर्युक्त दोनों लक्षण अविरुद्ध हैं । वास्तवमें वही इन्द्रियोंसे ग्रहण हो सकता हैं जिसमें कि रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पाया जाता है 1 क्योंकि इन्द्रियोंके ही विषय, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श पड़ते हैं। चक्षुका रूप विषय है, रसनाका रस विषय है, नाकका गन्ध विषय है, स्पर्शनेन्द्रिय का स्पर्श विषय है । कर्णेन्द्रियका विषय शब्द भी रूप रस गन्ध स्पर्शात्मक ही है । इसलिये विषय विषयीकी अपेक्षासे ही मूर्तका लक्षण इन्द्रिय विषय कहा गया है । जो इन्द्रियगोचर है वह तो मूर्त अवश्य है परन्तु जो इंद्रियगोचर नहीं है वह भी मूर्त है जैसे कि पुद्गलका एक परमाणु । इंद्रियगोचर होने में स्थूलता कारण है परमाणु सूक्ष्म है इसलिये वह इंद्रियगोचर नहीं है । परंतु वही परमाणु स्थूल स्कंध में मिल जानेसे स्थूल रूपमें परिणत होकर इंद्रियगोचर होने लगता है । हां स्पर्शनादि प्रत्यक्ष परमाणु अवस्थामें भी हो सकता है । इसलिये इंद्रियगोचरता मूर्तमात्रमें व्यापक है जो इंद्रियगोचर नहीं है वह अमूर्त है ।
मूर्त की तरह अमूर्त भी यथार्थ है
न पुनर्वास्तवं मूर्तममूर्त स्यादवास्तवम् ।
सर्वशून्यादिदोषाणां सन्निपातात्तथा सति ॥ ८ ॥
अर्थ -- मूर्त पदार्थ ही वास्तविक है अमूर्त पदार्थ वास्तविक नहीं है यह बात भी नहीं है क्योंकि ऐसा माननेसे सब पदार्थों की शून्यताका प्रसंग आ जायगा ।
भावार्थ - कितने ही पुरुष प्रत्यक्ष होनेवाले पदार्थों को ही मानते हैं परोक्ष पदार्थो को