Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ वेदगो ७ ४१. अप्पाबहुप्राणु० दुविहं-जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं । दुविहो णि०ओषेण आदेसेण य । ओघेण सव्वत्थोवा मोह० उक्क० अणुभागुदी० । अणुक्क ० अणुभागुदी० अणंतगुणा । एवं तिरिक्खा० । आदेसेण णेरइय० सव्वत्थोवा मोह० उक० अणुभागुदी० । अणुक्क० अणुभागुदी० असंखे०गुणा । एवं सव्वणेरइय०सव्यपंचिंदियतिरिक्ख-मणुस-मणुसअपज०-देवा भवणादि जाव अवराजिदा त्ति । मणुसपज०-मणुसिणी-सव्वट्ठदेवा सव्वत्थो० मोह० उक्क० अणुभागुदी० । अणुक० अणुभागुदी० संखेजगुणा । एवं जाव० । एवं जहण्णयं पि णेदव्वं ।।
$ ४२. भुजगारउदीरणाए तत्थ इमाणि तेरस अणियोगद्दाराणि-समुक्कित्तणा जाव अप्पाबहुए त्ति । समुक्कित्तणाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण अत्थि भुज०-अप्प०-अवट्ठि-अवत्त । एवं मणुसतिए । आदेसेण णेरइय० अस्थि सुज०-अप्प०-अवढि० । एवं सव्वणेरइय-सव्वतिरिक्ख-मणुसअपज०-सव्वदेवा त्ति । एवं जाव० ।
४३. सामित्ताण. दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण भुज-अप्प०. अवट्ठि० कस्स ? अण्णद० सम्माइट्ठि० मिच्छाइट्ठिस्स वा । अवत्त० कस्स ? अण्णद. उवसामगस्स परिषदमाणगस्स पढमसमयदेवस्स वा । एवं मणुसतिए । णवरि पढमसमय
$ ४१. अल्पबहुत्वानुगम दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव सवसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार सव नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, सामान्य मनुष्य, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमान तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदरीक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीव संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसी प्रकार जघन्यका भी कथन करना चाहिए ।
४२. भुजगार उदीरणाका प्रकरण है। उसमें ये तेरह अनुयोगद्वार होते हैं-समुकीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक। समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे भुजगार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य अनुभागके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। आदेशसे नारकियोंमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित अनुभागके उदीरक जीव हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तिर्यञ्च, मनुष्य अपर्याप्त और सव देवोंमें जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
४३. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थित अनुभागकी उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टिके होती है । अवक्तव्य उदीरणा किसके होती है ? अन्यतर गिरनेवाले उपशामकके या उपशामकके मरने पर प्रथम समयवर्ती देवके होती है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना