Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
View full book text
________________
१९
गा. ६२]
मूलपयडिअणुभागउदीरणाए अंतरं ३८. अंतरं दुविहं-जह० उक्क० । उक्क० पयदं। दुविहो णि.-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एयस०, उक्क० असंखेज्जा लोगा । अणुक्क० णत्थि अंतरं । एवं चदुगदीसु। गवरि मणुसअपज्ज० अणुक्क० अणुभागुदी० जह० एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो । एवं जाव० ।
5 ३९. जहण्णए पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० अणुभागुदी० जह० एयस०, उक्क० छम्मासं । अजह० णत्थि अंतरं । एवं मणुसतिए । णवरि मणुसिणी० वासपुधत्तं । सेसगदीसु उक्कस्सभंगो । एवं जाव० ।
४०. भावाणु० सव्वत्थ ओदइओ भावो ।
विशेषार्थ-अधिकसे अधिक संख्यात जीव ही क्षपक श्रेणिमें पाये जाते हैं, इसलिए नाना जीव यदि लगातार मोहनीयके जघन्य अनुभागकी उदीरणा करें तो उस कालका कुल योग संख्यात समय ही होगा, इसलिए ओघसे मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है। शेष कथन सुगम है।
३८. अन्तर दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ--यहाँ जो मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकप्रमाण बतलाया है, उसका इतना ही तात्पर्य है कि यदि नाना जीव निरन्तर उत्कृष्ट अनुभागकी उदीरणा न करें तो उक्त काल तक नहीं करते। इतने कालके बाद एक या नाना जीव नियमसे मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक हो जाते हैं । शेष कथन सुगम है।
३९. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है। अजघन्य अनुभागके उदीरकोंका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें जघन्य अनुभागके उदीरिकोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। शेष गतियों में उत्कृष्टके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ-झपक श्रेणिका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना प्रमाण होनेसे यहाँ ओघसे तथा मनुष्यत्रिकमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक नाना जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना कहा है । मात्र कोई भी मनुष्यनी जीव यदि आपकनेणि पर आरोहण न करे तो अधिकसे-अधिक वर्षपथक्त्वकाल तक नहीं करता ऐसा नियम है, इसलिए इसमें मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक नाना जीवोंका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
४०. भावानुगमकी अपेक्षा सर्वत्र औदयिक भाव है।