Book Title: Kasaypahudam Part 11
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatvarshiya Digambar Jain Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
- [ वेदगो ७ ३६. कालो दुविहो—जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं। दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० उक्क० अणुभागुदी० केवचिरं ? जह० एगस०, उक्क० आवलि० असंखे०भागो। अणुक्क० सव्वद्धा । एवं चदुगदीसु । णवरि मणुसतिए मोह० उक्क० अणुभागुदी० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अणुक्क० सव्वद्धा । एवं सवढे । मणुसअपज्ज० मोह० उक्क० जह० एयस०, उक्क० आवलि० असंखे भागो। अणुक्क० जह• एयस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। एवं जाव०। ___३७. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मोह० जह० अणुभागुदी० जह० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया। अजह० सव्वद्धा । एवं मणुसतिए । सेसगदीसु उक्कस्सभंगो । एवं जाव० ।
३६. काल दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है । इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि मनुष्यत्रिकमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। इसीप्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।
विशेषार्थ—मनुष्यत्रिक और सर्वार्थसिद्धिके देव संख्यात हैं। इसलिए इनमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक नाना जीवोंका उत्कृष्ट काल संख्यात समय कहा है, क्योंकि अत्र ट्यत सन्तानकी अपेक्षा इनमें नाना जीव यदि निरन्तर उत्कृष्ट अनभागकी उदीरणा करे तो उस कालका जोड़ संख्यात समय ही होगा । ओघसे और आदेशसे शेष गतियोंमें मोहनीयके उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक नाना जीव असंख्यातसे अधिक नहीं हो सकते, इसलिए इनमें उक्त न्यायके अनुसार उत्कृष्ट अनुभागके उदीरक नाना जीवोंका उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। मनुष्य अपर्याप्त यह सान्तर मार्गणा है, इसलिए इसमें मोहनीयके अनुत्कृष्ट अनुभागके उदीरक नाना जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण बन जानेसे उक्त कालप्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है।
३७. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयके जघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य अनुभागके उदीरक जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। शेष गतियोंमें उत्कृष्टके समान भंग है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए।