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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
(६) निष्क्रमण-संस्कार
(१४) उद्वाह-संस्कार (७) अन्नप्राशन-संस्कार
(१५) विवाहाग्निपरिग्रह-संस्कार (८) वपनक्रिया-संस्कार
(१६) त्रेताग्निसंग्रह-संस्कार इसी प्रकार स्मृतिचन्द्रिका द्वारा उद्धृत जातूकर्ण्य में भी निम्न सोलह-संस्कारों की ही सूची मिलती है२. (१) गर्भाधान-संस्कार
(६-१२) चारवेदव्रत-संस्कार (२) पुंसवन-संस्कार
(१३) गोदान-संस्कार (३) सीमन्त-संस्कार
(१४) समावर्तन-संस्कार (४) जातकर्म-संस्कार
(१५) विवाह-संस्कार (५) नामकरण-संस्कार
(१६) अंत्येष्टि-संस्कार (६) अन्नप्राशन-संस्कार (७) चौल-संस्कार (८) उपनयन-संस्कार
___ व्यास द्वारा दी गई तालिका से इसमें कुछ अन्तर है, जैसे- व्यास द्वारा दी गई सूची में वेदारम्भ-संस्कार का उल्लेख किया गया है, जबकि जातूकर्ण्य में उसके स्थान पर चारवेदव्रतों का उल्लेख किया गया है, इत्यादि।
इसी प्रकार मध्यकालीन लेखन में हमें गौतम, अंगिरा, व्यास, जातकर्ण्य, आदि की संस्कार-सूची का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु उसमें प्रायः गर्भाधान से आरम्भ कर विवाह तक के संस्कारों का ही वर्णन मिलता है। उसमें हमें दैव-संस्कारों, अर्थात् यज्ञों का वर्णन नहीं मिलता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि वे केवल संस्कार का परम्परागत रूढ़ अर्थ ही स्वीकार करते हैं। इनमें भी हमें अधिकांशतः, स्मृतियों की भाँति ही, अन्त्येष्टि-संस्कार का उल्लेख नहीं मिलता है।
इस प्रकार वैदिक-परम्परा में समय के प्रवाह के साथ-साथ संस्कारों की संख्या आदि में भी परिवर्तन हुआ है, जो वैदिक-विद्वानों के लिए चर्चा का विषय रहा है। अन्ततः, वैदिक-परम्परा में षोडश संस्कारों की मान्यता स्थिर हो गई, जो आज तक प्रचलित है। जैन-परम्परा में आचारदिनकर में गृहस्थ के जिन षोडश
२२ देखेः धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१७७, उत्तरप्रदेश हिन्दी
संस्थान, लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
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