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साध्वी मोक्षरत्ना श्री
(२) पुंसवन-संस्कार (१५) देवयज्ञ (३) सीमन्तोन्नयन-संस्कार (१६) पितृयज्ञ (४) जातकर्म-संस्कार (१७) मनुष्ययज्ञ (५) नामकरण-संस्कार (१८) भूतयज्ञ (६) अन्नप्राशन-संस्कार (१६) ब्रह्मयज्ञ (७) चौलकर्म-संस्कार (२०) अष्टकयज्ञ (८) उपनयन-संस्कार (२१) पार्वणयज्ञ (१५ से १६ तक पंचमहायज्ञ) (६-१२) चारवेदव्रत-संस्कार (२२) श्राद्धयज्ञ (१३) स्नान-संस्कार (२३) श्रावणीयज्ञ (२४) आग्रहायणीयज्ञ (३३) सौत्रामणी (२७-३३ तक सप्त हविर्यज्ञ) (२५) चैत्रीयज्ञ (३४) अग्निष्ट होम (२६) आश्वयुजी (२०-२६ तक सप्त पाकयज्ञ) (३५) अत्यग्निष्टोम (२७) अग्न्याधेय (३६) उक्थ्य (२८) अग्निहोत्र (३७) षोडशी (२६) दर्श पौर्णमास (३८) वाजपेय (३०) चातुर्मास्य (३६) अतिरात्र (३१) आग्रहायणेष्टि (४०) आप्तौर्यामि (३४-४० तक सप्त सोमयज्ञ) (३२) निरूढ़ पशुधन
धर्मसूत्रों में भी संस्कारों एवं यज्ञों का उल्लेख हमें एक साथ ही मिलता है। स्पष्ट है कि वहाँ भी संस्कारों और यज्ञों में कोई विभेद नहीं किया गया है। संस्कार शब्द का प्रयोग सामान्य रूप से धार्मिक कृत्यों के अर्थ में किया गया है। हारीत के अनुसार संस्कारों की दो कोटियाँ हैं- (१) ब्रह्म एवं (२) दैव। गर्भाधान आदि मनुष्य-जीवन के विभिन्न अवसरों पर किए जाने वाले संस्कारों को ब्रह्म कहते हैं तथा विभिन्न यज्ञों को दैव-संस्कार कहते हैं। वास्तव में देखा जाए, तो ब्रह्म-संस्कारों को ही यथार्थ में संस्कार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इस
र हिन्दू संस्कार, डॉ. राजबली पाण्डेय, अध्याय-दो (द्वितीय परिच्छेद), पृ.-२३, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी,
पंचम संस्करण १६६५. * देखेः धर्मशास्त्र का इतिहास (प्रथम भाग), पांडुरंग वामन काणे, अध्याय-६, पृ.-१७७, उत्तरप्रदेश हिन्दीसंस्थान,
लखनऊ, तृतीय संस्करण १६८०.
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