________________ विषयानुक्रमणिका पृष्ठ संख्या शुभाशीष v-vii कुशल व्यक्तित्व के धनी लाला हमीरचन्द्र जी viii पुरोवाक् ix-xii प्रस्तावना xiit-xvii प्राकथन xvili -xxii शब्द संकेत विवरण xxiii-xxxiv प्रथम परिच्छेद :: विषय-प्रवेश :: 1-13 . जैन महामन्त्रः नमस्कार-मन्त्र, परमेष्ठी पद की निरुक्ति, परमेष्ठी की व्याख्या, महामन्त्र नमस्कार अनादि नहीं, परमेष्ठी एक अथवा पांच, पञ्च परमेष्ठी, अरहन्त के प्रतिनिधि आचार्य और उपाध्याय, परमेष्ठी का स्वरूप साधुत्व, पञ्च परमेष्ठियों का पौर्वापर्य विचार, सिद्ध के ज्ञापक अरहन्त, नमस्कार-महामन्त्र साम्प्रदायिक नहीं / द्वितीय परिच्छेद :: अरहन्त परमेष्ठी ::15-71 (क) भारतीय वाङ्मय एवं अरहन्त : (1) त्रिषष्टि महापुरुष, (2) वैदिक वाङ्मय में अर्हत्, (3) लौकिक वाङ्मय में अर्हत्-(क) पूज्य अर्थ में अर्हतः (ख) योग्य अथवा समर्थ अर्थ में अर्हत्, (4) बौद्ध वाङ्मय में अर्हत्-अर्हत् शब्द का निर्वचन, (5) जैन वाङ्मय में अर्हत्-अर्हत् शब्द की व्याख्या -(1) अरहन्त, (2) अरह, अरहा एवं अरहो, (3) अरिहन्त वा अरिहो, (4) अरुह एवं अरुहन्त, (5) अरथान्त। (ख) आध्यात्मिक विकास और अर्हत्पद : (1) मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, (2) सासाद गुणस्थान, (3) सम्यग्-मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, (4) अविरत सम्यग् दृष्टि गुणस्थान,