________________ 218 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी 4.शय्या : ठहरने के स्थान को शय्या अथवा उपाश्रय कहते हैं। (इ) दिगम्बर साधु के उपकरण : उपकरणों के विषय में जहां तक दिगम्बर साधु का प्रश्न है, उसकी आवश्यकताएं अत्यन्त सीमित हो जाती हैं। नग्नता के कारण उसे किसी भी प्रकार के वस्त्र की आवश्यकता नहीं रहती है। पाणिपात्रभोजी होने से उसे किसी पात्र की भी आवश्यकता नहीं रहती है। वह शौच के लिए एक कमण्डलु और जीव रक्षा के लिए एक मयूरपिच्छिका रखता है। शयन करने के लिए प्रायः भूमि, शिला, लकड़ी का तख्ता या घास का ही प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त साधु की और कोई उपधि नहीं होती। इस तरह दिगम्बर साधु की केवल तीन ही उपधियां बतलायी गई हैं. ज्ञानोपधि पुस्तकआदि,2.संयमोपधि-पिच्छिका आदि,तथा3.शौचोपधि-कमण्डलु आदि। (उ) विस्मृत या पतित उपकरण का विधान : साधु आहार के लिए गृहस्थों के घरों में जाते हैं, उच्चार-प्रश्रवण के लिए बाहर जाते हैं तथा विहार करते हुए एक गांव से दूसरे गांव विचरण करते हैं / उस समय कोई उपकरण गिर सकता है याभूला जा सकता है। इस प्रकार के उपकरण को यदि कोई साधर्मिक देखे तो-जिसका यह उपकरण है, उसे दे दूंगा' इस भावना से उस उपकरण को लेकर आए और जहां किसी साधुको देखे वहां इस प्रकार कहे कि हे आर्य! क्या तुम इस उपकरण को पहचानते हो ? यदि वह उसे पहचान लेता है तो उस उपकरण को उसे दे देवे और यदि वह नहीं पहचानता है तो उसे न स्वयं रखे और न किसी अन्य को देवे बल्कि एकान्त प्रासुक भूमि पर उपकरण को छोड़ दे। (घ) वसति या उपाश्रय : __ साधु के ठहरने के स्थान को वसति या उपाश्रय कहते हैं। इस स्थान के लिए 'शय्या' शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। शय्यासे अभिप्राय है-जहां पर लेटने के लिए बिस्तर बिछाया जा सके। उपाश्रय कैसा हो? साधु के ठहरने के स्थान के विषय में उत्तराध्ययन सूत्र में निम्नलिखित संकेत मिलते हैं - 1 णिच्चेलपाणिपत्तं उवइलैं परम जिणवरिंदेहिं / सुत्तपाहुड गा०१० 2. दे०-मूला०वृ० 1.14 3. दे०-व्यवहार सूत्र,८.१३-१५ 4. बाणारसीए बहिया उज्जाणंमि मणोरमे। फासुए सेज्जसंथारे तथ्थ वासमुवागए।। उ० 25.3